मुम्बई की बारिश और बिहार-नार्थ ईस्ट की बाढ़

विकास वर्मा (Vikas Verma) कुछ दिनों पहले मुम्बई में भारी बारिश हुई थी. जन जीवन दो-तीन दिन तक पूरी तरह अस्त व्यस्त रहा था. मुम्बई की ये समस्या मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पे छाई हुई थी कि- लोग किस तरह हताहत हुए? मुम्बई की गलियों में कितनी ऊंचाई तक पानी भर गया? लोग कहाँ कहाँ फंसे हुए हैं? कौन […]

गंभीर मुद्दों की ओर इशारे हैं ‘न्यूटन’ फिल्म में- एक समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) जब सरकार चुनाव सिर्फ इसलिए कराए ताकि ये दिखा सके कि किसी क्षेत्र विशेष पर अब उसका अधिकार है तब ऐसे में मन में एक सवाल उभरता है कि लोकतंत्र है क्या फिर? क्या चुनाव, मंत्री, विधायिका, संसद ही लोकतंत्र है या स्वतंत्रता, समानता, न्याय, गरिमा, विरोध/असहमति का अधिकार जैसे आदर्श लोकतंत्र है. इसी बात की […]

सैयद व आले रसूल शब्द – सत्यता व मिथक

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) सैयद व आले रसूल शब्दों का प्रयोग अजमी (ईरानी और गैर-अरबी) विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों द्वारा जिस अर्थ में किया जाता है उसका अपने शाब्दिक अर्थ व इस्लामिक मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नही है। अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा अपने लेखो,पुस्तको व भाषणों में “सैयद व आले रसूल” शब्द का प्रयोग […]

पी.के. कभी नहीं कह पायेगा ‘तोहार बॉडी पर जाति का ठप्पा किधर है’

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) प्रगति के समर्थक प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य है कि वह पुराने विश्वास से संबंधित हर बात की आलोचना करे, उसमें अविश्वास करे और उसे चुनौती दे. प्रचलित विश्वास की एक-एक बात के हर कोने-अंतरे की विवेकपूर्ण जाँच-पड़ताल उसे करनी होगी. यदि कोई विवेकपूर्ण ढंग से पर्याप्त सोच-विचार के बाद किसी सिद्धांत या दर्शन में विश्वास […]

बुद्धि, बुद्धिजीवियों का अपमान भारत की परंपरा रही है

संजय जोठे (Sanjay Jothe) बुद्धिजीवी किसी “एक समुदाय से” जरुर हो सकता है लेकिन किसी “एक समुदाय का” नहीं होता. भारत जैसे असभ्य समाज में बुद्धि और बुद्धिजीवियों का अपमान करना और उन्हें सताना एक लंबी परम्परा है. यह बेशर्म परम्परा एक अखंड जोत की तरह जलती आई है, इसके धुवें और जहर ने देश समाज की आँखों को अंधा […]

एक अंबेडकरवादी परिवार के होने का महत्व

तेजस्विनी ताभाने पिछले महीने मैंने एक लेख ‘हम में से कुछ को तमाम उम्र लड़ना होगा: अनूप कुमार’ राउंड टेबल इंडिया (अंग्रेजी) पर पढ़ा था, जहां अनूप सर ने बताया कि कैसे हमारे समाज के हाशिए वाले वर्गों के छात्रों को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में पहचान को लेकर कई असहज सवाल पूछे जाते हैं, और यह कि अगर आप एक […]

वाल्मीकियों का पहला एतिहासिक मोर्चा (1933 से 1938 तक)

पंडित बख्शी राम (Pandit Bakhshi Ram) आदि धर्म आन्दोलन के बाद जालंधर में पंजाब भर के वाल्मीकियों का 1933 में सम्मलेन हुआ. स्वागती कमेटी बनी जिसका प्रधान बाबु गंढू दास को और जनरल सेक्रेटरी पंडित बख्शी राम को बनाया गया. सम्मलेन में विचाराधीन मुद्दे महाऋषि वाल्मीकि का जन्म उत्सव मनाना और दुसरे राम तीरथ वाल्मीकि मंदिर में प्रवेश करना था. […]

पंजाब की भंगी लहर (सन 1939)

पंडित बख्शी राम (Pandit Bakhshi Ram) जालंधर म्युन्सिपल कमेटी पर क़ाज़ी बशीर अहमद का कब्ज़ा था और उसके मुकाबले शेख गुलाम मोहम्मद का ग्रुप था. उसे कांग्रेस पार्टी की हिमायत थी. शेख गुलाम साहेब बस्ती शेख के रहने वाले थे. वहीँ के ही वाल्मीकि नेता चुन्नी लाल और बालमुकुन्द थे. उनका गुलाम मोहम्मद के साथ मेलजोल था. गुलाम मोहम्मद की […]

भारत के सभ्य होने की राह में सबसे बड़ी बाधा – भारत का अध्यात्म और रहस्यवाद

संजय जोठे (Sanjay Jothe) भारत का अध्यात्म असल में एक पागलखाना है, एक ख़ास तरह का आधुनिक षड्यंत्र है जिसके सहारे पुराने शोषक धर्म और सामाजिक संरचना को नई ताकत और जिन्दगी दी जाती है. कई लोगों ने भारत में सामाजिक क्रान्ति की संभावना के नष्ट होते रहने के संबंध में जो विश्लेषण दिया है वो कहता है कि भारत […]

जाति का सवाल और खालिस्तान के दायरे – कुछ इशारे

गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) अलग सिख राज्य की मांग जो काफी समय से खालिस्तान के लिए जद्दोजेहद में तब्दील हो चुकी है, एक काबिल-ए-गौर प्रश्न है.   खालिस्तान की जद्दोजेहद में अगर ब्राह्मणवाद को सेलेक्टिव या अपनी सहूलियत के मुताबिक ही एड्रेस करना है तो मुझे अपने अनुभव से कहना होगा कि इस लड़ाई में लगे लोग गोल गोल ही […]