सैयदवाद ही इबलीसवाद है?

Nurun N Zia Momin

  एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) इस लेख को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि पसमांदा आन्दोलन से सम्बन्धित व्यक्तियों, पसमांदा संगठनो के पदाधिकारियों तथा समर्थकों द्वारा इबलीसवाद, इबलीसवादी तथा इबलीसी जैसे शब्दों का प्रयोग अक्सर अपने लेखों, भाषणों, फेसबुक, व्हाट्सअप जैसी सोशल साइटों पर अपनी पोस्टों तथा बहस के दौरान अपनी टिप्पणियों में किया जाता है […]

आंबेडकरवादी राजनीतिक दर्शन के परिपेक्ष्य में फ़िल्म ‘न्यूटन’ की वैचारिक समीक्षा

khakse

ऋषिकेश देवेंद्र खाकसे (Hrishikesh Devendra Khakse) जीवन के लगभग हरेक क्षेत्र मे प्रतिगामी विचारधारा का नायकत्व विद्यमान है. टेलीव्हिजन, फिल्म तथा माध्यम जगत का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है. इस मूलतत्ववादी विचारधारा को संचालित करने वाला प्रस्थापित वर्ग, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तय विचारधारा को टेलीव्हिजन तथा फिल्म माध्यम के फॉर्म से भूमिका, विशेषणों, प्रतीक, स्थल आदी द्वारा […]

शोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?

shafi

शफ़ीउल्लाह अनीस (Shafiullah Anis) आम बातचीत में अगर आप किसी को बताएं कि आप जुलाहा या रंगरेज़ हैं, या पठान या सय्यद हैं तो इस बातचीत को रोज़मर्रा की बातों में ही शुमार किया जाता है. वहीँ दूसरी तरफ जैसे ही आप खुद को पसमांदा या सामने वाले को अशराफ कह कर मुखातिब होते हैं, आप पर एक इल्ज़ाम लगा […]

भारत, हिदुस्तान और राजनीति

एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) ये सत्य है कि संघ व उससे से जुड़े संगठनो से सम्बंधित व्यक्तियों, सदस्यों व पदाधिकारियों की टिप्पणियाँ समय-समय पर मुझे बतौर मुस्लिम आहत भी करती रही है और ये सोचने पर मजबूर भी करती रही है कि क्या किसी संगठन के पदाधिकारियों से इस तरह की तर्कहीन व निराधार टिप्पणियों की आशा […]

डाॅ. अम्बेडकर का जीवन दर्शन ही मेरे जीवन का प्रेरणा स्रोत- कैलाश वानखेडे

डॉ. रत्नेश कातुलकर कैलाश वानखेड़े जी अपने प्रथम कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ से हिंदी साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान के रूप में उभरे हैं. उनकी कहानियों की ज़मीन व्यापक बहुजन आन्दोलन है. कहानियों के पात्र गाढ़ी स्याही से हस्ताक्षर करते हैं. कई जगहों पर उनकी कहानियों को लेकर कार्यक्रम रखे गए. कहानियों का पाठ हुआ. उन्हीं की एक कहानी ‘जस्ट […]

बहुजन ऑटोनोमी – एक विचार

युवा साथियों के नाम जिनसे बहुजन दृष्टिकोण पर बातचीत हुई   गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) बहुजन गाड़ी पर 85% लोगों का बोझा है. बहुत जद्दोजेहद के बावजूद यह बहुत धीमे चल रही है. यह बोझा ज़िम्मेदारी में जब बदलेगा तब गाड़ी थोड़ी खुशगवार रफ़्तार पकड़ेगी. ज़िम्मेदारी का मतलब बहुजनों को ईंधन और पुर्जों में खुद को ढालना पड़ेगा. बहुजन ऑटोनोमी इसकी […]

माहवारी से गुज़रती हैं महिलाएं, नियम चलते हैं पुरुषों के

Aarti Rani

आरती रानी प्रजापति महावारी 10-14 की आयु में शुरू होने वाला नियमित चक्र है. जिसमें स्त्री की योनि से रक्त का स्त्राव होता है. यह वह समय है जब स्त्री के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं. महावारी सिर्फ शरीर में घट रही एक घटना नहीं है बल्कि इसका सम्बन्ध दिमाग से भी है. महावारी के समय स्त्री थकान महसूस […]

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जात-पात (जातिवाद) की जड़ें

मसूद आलम फलाही (Masood Alam Falahi) मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) पिछड़ी बिरादरियों को शिक्षा का अधिकार दिए जाने कि बात दूर की है. धार्मिक दृष्टिकोण से सभी मुसलमानों को बराबर नहीं समझा गया. इस का एक उदाहरण मौलाना अशरफ़ अली थानवी (र०अ०) की किताब ‘अशरफ़-उल-जवाब’ में मिलता है. उस के अन्दर है कि- “एक अंग्रेज़ अलीगढ़ कॉलेज […]

कुफ़ू मान्यता और सत्यता

एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) कुफू का शाब्दिक अर्थ बराबर, मिस्ल, हमपल्ला और जोड़ होता है। इस्लामिक विद्वानों (उलेमा) द्वारा ये शब्द सामान्यतः शादी-विवाह (वर-वधू) के सम्बन्ध में प्रयोग किया जाता है, अर्थात जब ये कहा जाता है कि फला फला का कुफू है तो अर्थ ये होता है कि फला फला आपस मे बराबर है और […]

हिंदी, ब्राह्मण के हाथ में औज़ार और पंजाब- एक बहुजन नज़रिया

गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) खबर पंजाब से है और अच्छी है. बठिंडा-फरीदकोट हाईवे पर हिंदी और अंग्रेजी में लिखे राह-ईशारा तख्तियों पर रंग पोत दिया गया है. इन तख्तियों पर या तो पंजाबी भाषा में लिखे शहर के नाम अंग्रेजी और हिंदी में लिखे नाम के नीचे थे या फिर पंजाबी में लिखे ही नहीं गए. हिंदी-अंग्रेजी में लिखे नामों […]