डा. रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) 90 के दशक में भारत दो ऐसे आंदोलन हुए जिन्होंने देश की राजनीति की दशा हमेशा के लिये बदल दी। वे थे मंडल और कमंडल। वीपी सिंह के नेतृत्व में मंडल आंदोलन सामाजिक न्याय पर आधारित था जबकि कमंडल यानी रामजन्मभूमि मंदिर आंदोलन ने बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को भड़काया। इसका प्रभाव जनमानस पर […]
आंबेडकर किताबों में हैं, (और) मूर्तियों में भी।
विकास वर्मा (Vikas Verma) पिछ्ले कई सालों से बहुत लोगों को बोलते और लिखते हुए देखता आ रहा हूँ कि डॉ. आंबेडकर किताबों में रहते हैं, मूर्तियों में नहीं। और ये विचार हर साल आंबेडकर जयंती के दौरान लोगों की लेखनी और कथनी में उफान मारने लगता है। पहली नज़र में ये बात जायज़-सी दिखती है। किसी महापुरुष की वैचारिकता […]
कौन हैं ये बाबा साहेब को ‘हृदयहीन’ और ‘गोड्से का समर्थक’ बताने वाले?
अरविंद शेष और राउंड टेबल इंडिया (Arvind Shesh & Round Table India) संदर्भ में मनमानी छेड़छाड़ के जरिए दुराग्रहों और धूर्त कुंठाओं का निर्लज्ज प्रदर्शनबाबा साहेब आंबेडकर के खिलाफ राजकमल प्रकाशन और अशोक कुमार पांडेय का दुराग्रही एजेंडा और धूर्ततापूर्ण अभियान इतिहास की किताब कोई कविता, कहानी, उपन्यास या गल्प लेखन नहीं है, जिसके पाठक अपनी सुविधा और समझ के […]
क्या सैयदवाद ही ब्राह्मणवाद है?
अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) मुस्लिम समाज में जातिवादी व्यवस्था पूरी तरह से मौजूद है पर आज तक किसी सैयद ने सैयदवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने इस आधार पर पसमांदा समाज की ज़िन्दगी में हर पहलु पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ बात नहीं की है। यह कहना न होगा कि ऊँच-नीच और सामाजिक बहिष्कार भारतीय समाज के जातिवाद […]
दलितों पिछड़ों को अपना दीपक स्वयंम बनना है
संजय जोठे धर्म, इश्वर और आलौकिक की गुलामी एक लाइलाज बिमारी है. भारत में इसे ठीक से देखा जा सकता है. कर्मकांडी, पाखंडी और अपनी सत्ता को बनाये रखने वाले लोग ऐसी गुलामी करते हैं ये, बात हम सभी जानते हैं. लेकिन एक और मज़ेदार चीज़ है तथाकथित मुक्तिकामी और क्रांतिकारी भी यही काम करते हैं. इस विषचक्र से […]
अपना मीडिया : वक्त की जरूरत
दिनेश अमिनमन्तु [यह भाषण “मीडिया में दलित प्रोफेशनल की सहभागिता”, दिनेश अमिनमन्तु द्वारा कन्नड़ में दिया गया था। जो कर्नाटक SC/ST एडिटर एसोसिएशन द्वारा बाबासाहेब की १२५ जयंती के अवसर पे हुए 18th जुलाई 2016 के कार्यक्रम का हैं. ] अगर मुझसे कोई भारतीय मीडिया में मेरे रोल मॉडल के बारे में पूछे तो मेरा जवाब डॉ बाबा साहेब […]
अस्मिता की राजनीति या न्याय की लड़ाई
जयप्रकाश फाकिर अम्बेडकर , पेरियार, ललई यादव, कयूम अंसारी जैसे दलित बहुजन नेता इसी सवर्णवादी समझ से जूझते हुए दलित बहुजन प्रश्न को सियासी दायरे में लाने में सफल रहे और १९९० के बाद का साइलेंट इन्कलाब मुमकिन हो सका. अब सवर्ण राजनीति के बाएं और दायें दोनों बाजू के धड़े इस क्रांति को उल्ट देना चाहते हैं. इसके लिए […]
दलित-विद्रोह की लपटों में घिरा आरएसएस – संघियों के गले का फांस बनी गाय
अरविंद शेष दो बयान देखें:- 1- तब के रावण, आज के नसीमुद्दीन/ तब के लक्ष्मण आज के दयाशंकर सिंह. तब की शूर्पनखा, आज की मायावती/ तब की दुर्गा, आज की स्वाति सिंह. – इलाहाबाद में आरक्षण मुक्त महासंग्राम और भाजपा के छात्र नेता अनुराग शुक्ला की तरफ से लगाया गया पोस्टर. 2- हिंदुओं के पाप के कारण ही […]
सहिष्णुता और असहिष्णुता
देवनूरु महादेव सहिष्णुता-असहिष्णुता आज के “मुझे मत छूओ” शब्द बन गये हैं। शुद्धता को अछूतपन से जोड़ कर भारत आधे जीवित और आधे मृत लोगों का देश बनकर रह गया है। अतः कम बोलने में ही सुरक्षा है। मैं स्वयं भी समझने का प्रयास कर रहा हूँ। आज के प्रचलित असहिष्णु आचरण को समझे बिना, सहिष्णुता को समझा नहीं जा […]
डॉ. अम्बेडकर द्वारा स्थापित राजनीतिक प्रवेश प्रशिक्षण विद्यालय: एक भूली हुई दास्ताँ
बाबासाहेब अम्बेडकर (१८९१-१९५६) की १२५ वीं जयंती केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से धूमधाम से मनाई गई, यद्यपि, इस उमंग और उत्साह से भरे माहौल में डॉ. अम्बेडकर से सम्बंधित आज तक उपेक्षित रहे ऐसे कुछ मुद्दे इस वर्ष भी नदारद दिखे, जिनकी आज के समय में अत्यन्त आवश्यकता है, […]