डोन्ट लुक अप’: धारणा निर्माण का एक और खेला

अरविंद शेष (Arvind Shesh) ‘डोन्ट लुक अप’ भी सुर्खियों में है। जो दौर चल रहा है, उसमें जो भी चीज सुर्खियों में हो, उस पर एक बार तो शक कर ही लेना चाहिए! दिमाग के ‘डिटॉक्सिफिकेशन’ (अंग्रेजी का एक शब्द जिसका अर्थ है गलत खानपान की वजह से शरीर में बन गए ज़हरीले तत्वों को निष्क्रिय करने के लिए लिए […]

द पियानिस्ट : जब कानून का पालन ही मानव त्रासदी का कारण बन जाए

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) द पियानिस्ट (The Pianist, 2004) रोमन पोलांस्की की होलोकॉस्ट (यहूदियों का जनसंहार) पर बनाई गई सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक है. यह फिल्म पोलिश पियानिस्ट व्लादिस्लाव स्पिलमैन (Wladyslaw Szpilman) की सच्ची घटना पर आधारित है. निर्देशक रोमन पोलांस्की ख़ुद एक होलोकॉस्ट सर्वाइवल थे, जिस का प्रभाव फ़िल्म की बारीकियों में नज़र आती है.  रोमन पोलांस्की ने इस फ़िल्म […]

‘जोजो रैबिट’: अंधभक्तों को आईना | फिल्म समीक्षा | बहुजन दृष्टिकोण

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) सबसे पहले मैं आपको अपना एक किस्सा सुनाता हूँ। बात बहुत पुरानी नहीं है, हुआ यूँ कि मुझे सरकारी स्कूल में पहली बार बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाने का मौक़ा मिला था। शायद वह 8th-D की क्लास थी, विषय था ‘हाशिये का समाज’। ब्लैक बोर्ड पर मैंने चॉक से एक शब्द लिखा ‘मुसलमान’ और बच्चों से […]

‘जय भीम’ : व्यवस्था के दायरे, उलझी उम्मीद और हाशिये पर चेतना का संघर्ष

अरविंद शेष (Arvind Shesh) परदे पर कोई कहानी फिल्म हो सकती है, डॉक्यूमेंटरी हो सकती है या फिर बायोग्राफी हो सकती है। देश और काल के मुताबिक इसके दर्शक वर्ग अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन फिल्म विधा में होने वाले लगातार प्रयोगों का यह हासिल जरूर हुआ है कि फिल्म और बायोग्राफी का दर्शक वर्ग अब मिला-जुला होने लगा है। […]

थर्ड डिग्री टॉर्चर यानी यातना और जुल्म के चरम का दृश्य-प्रभाव

संदर्भः फिल्मों में पीड़ित पात्रों के खिलाफ क्रूरता का दृश्यांकन अरविंद शेष (Arvind Shesh) अगर कोई इंसान या तबका लगातार अपने आसपास अपने लोगों पर जुल्म ढाए जाते हुए देखे, चरम यातना का शिकार होते देखे तो उस पर क्या असर होगा? प्राकृतिक या कुदरती तौर पर इंसान निडर ही पैदा होता है, लेकिन कुदरत उसे खुद को बचाने के […]

प्रोफेसर विवेक कुमार के ‘जय भीम’ पर प्रश्नों के उत्तर

Vruttant Manwatkar1

वृत्तान्त मानवतकर (Dr. Vruttant Manwatkar) ‘जय भीम’ फिल्म  के रिलीज होते ही उसके ऊपर वर्चुअल चर्चाओं का एक सैलाब सा आ गया है. कोतुहल और रोमांच से भरे लोग इस पिक्चर पर अपने विचार साझा करने के लिए उत्साहित हैं. ऐसा हो भी क्यों न! इस पिक्चर का नाम ही जो ‘जय भीम’ है. ‘जय भीम’ शब्द नए भारत की […]

मुख्यधारा के पत्रकारों से प्रश्न – फिल्म का नाम जय भीम ही क्यों रखा गया?

प्रोफेसर विवेक कुमार (Professor Vivek Kumar) जब से ‘जय भीम’ फिल्म रिलीज हुई है उस पर लोग काफी ज्ञान बांट रहे हैं. लोग यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि इस फिल्म में यह देखिए, इसमें वह देखिए; इसका, मतलब यह होता है उसका मतलब वह होता है. यहां तक कि लोग ‘जय भीम’ का अर्थ क्या होता है […]

सारपट्टा परंबराई- सवर्ण परंपरा पर एक मुक्का

जेएस विनय (JS Vinay) “अत्त दीपो भव:– अपना दीपक खुद बनो” ~ बुद्ध “आपको अपनी गुलामी खुद ही खत्म करनी होगी. इसके उन्मूलन के लिए भगवान या सुपरमैन पर निर्भर न रहें। याद रखें कि यह पर्याप्त नहीं है कि लोग संख्यात्मक रूप से बहुमत में हैं. सफलता प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए उन्हें हमेशा सतर्क, मजबूत और स्वाभिमानी […]

अनाज का रसायन विज्ञान (किसान को समर्पित 5 लघु कविताएँ)

बाल गंगाधर बाग़ी (Bal Gangadhar Baghi) 1. किसान किसान नहीं तो भोजन नहीं, भोजन नहीं तो जीवन नहीं। और जीवन नहीं तो मानवता सभ्यता का अंत।फिर किसी का भी इतिहास नहीं होगाक्योंकि इतिहास लिखने के लिए इतिहासकार का भी ज़िंदा रहना ज़रूरी हैयही ज़िंदगी की धूरी है।इसीलिए !किसान का अंत होना,इतिहास का भी अंत होना है ! 2. रोटी का […]

यहाँ एक तस्वीर है

[smartslider3 slider=2] अनु रामदास (Anu Ramdas) कुछ समय पहले की बात है जब मैं एक शूद्र संत-कवि सरलादास द्वारा लिखित उड़िया महाभारत के अनुवाद की तलाश कर रही थी. द शेयर्ड मिरर  पर सरला की गंगा पर केंद्रित एक अंश को पोस्ट करने के लिए उत्सुक थी. इसलिए मैं पुस्तकालय और इंटरनेट पर इन पर हुई खोजों को इकठ्ठा करने […]