अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है

ratnesh katulkar

डा. रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) 90 के दशक में भारत दो ऐसे आंदोलन हुए जिन्होंने देश की राजनीति की दशा हमेशा के लिये बदल दी। वे थे मंडल और कमंडल। वीपी सिंह के नेतृत्व में मंडल आंदोलन सामाजिक न्याय पर आधारित था जबकि कमंडल यानी रामजन्मभूमि मंदिर आंदोलन ने बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को भड़काया। इसका प्रभाव जनमानस पर […]

जाहिलियत खत्म नहीं हुई: सिलहट-कछार क्षेत्र के महिमल के खिलाफ सामाजिक पूर्वाग्रह

डॉ. ओही उद्दीन अहमद (Ohi Uddin Ahmad) एक अंतर्देशीय मुस्लिम मछली पकड़ने वाली जाति जो मुख्य रूप से बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र और असम के बराक घाटी और उनके आसपास के क्षेत्रों में बसी हुई है, उनकी महिमल (स्थानीय बंगाली बोली में मैमल) के नाम से जाना जाता है। महिमल शब्द की उत्पत्ति दो फ़ारसी शब्दों ‘माही’ अर्थात मछली और […]

विश्व के कोइतूर लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस- भारत में एक नई क्रांति का आग़ाज़

अगर हम कोइतूर शब्द को और गहरे अर्थ में समझें तो आज की अनुसूचित जनजातियों (Schedule Tribes), अनुसूचित जातियों (Schedule caste), पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes) और धार्मिक अल्पसंख्यकों (Religious Minorities) को मिलकर जो समूह बनता है वह भी कभी इसी कोइतूर (Indigenous) समाज का हिस्सा था लेकिन कालांतर में बाहर से आने वाले लोगों की संस्कृतियों के प्रभाव और संपर्क में आकर अपनी मूल संस्कृति, रहन-सहन, भाषा बोली, तीज त्योहार, खान पान, पूजा पाठ, जीवन संस्कार इत्यादि को त्याग दिया और अपने कोइतूर होने के अधिकार को खो दिए। भारत की मात्र कुछ जनजातियाँ जैसे गोंड, प्रधान, कोया, इत्यादि ही अपने उस प्राचीन मूल कोयापुनेमी सभ्यता और संस्कृति को बचाए रहने में सफल रहे हैं और आज भी कोइतूर होने का अधिकार रखते हैं।

‘भीमबाबा’ वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए एक बहुमूल्य पुस्तक

जब भी हम किसी किताबों की दुकान पर जाते हैं, तो हमें काल्पनिक चरित्रों और अवास्तविक कहानियों पर आधारित किताबों और कॉमिक्स का भंडार दिखाई देता है। हालाँकि महान सामाजिक नेताओं पर साहित्य की हमेशा कमी रहती है, जिन्होंने सामाजिक असमानता को दूर करने और सभी मनुष्यों के लिए एक बेहतर दुनिया की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

‘भीमबाबा’ पुस्तक निश्चित रूप से इस अंतर या खाई को भरती है। यह पुस्तक केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी है क्योंकि लेखक ने भारतीय समाज में जाति व्यवस्था और पितृसत्ता जैसे गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दों को समझदारी के साथ सामने रखा है। उन्होंने बच्चों में प्रश्न पूछने के चलन को भी बढ़ावा दिया है।

मज़दूरों का एक स्कूल और एक टीचर का कामकाजी सफ़र

झरना साहू (Jharna Sahu)  मैंने इस लेख को इसीलिए लिखना शुरू किया क्योंकि लिखने से हमें हमारे काम व् जीवन पर पुनर्विचार करने में काफी मदद मिलती है। अपने काम की परिस्थितियों व् एक टीचर बने रहने के संघर्ष के कारण, हम कुछ टीचर जो रायपुर के औद्योगिक इलाके के एक छोटे से प्राइमेरी स्कूल में पढ़ाते हैं, ने इस […]

कौन हैं ये बाबा साहेब को ‘हृदयहीन’ और ‘गोड्से का समर्थक’ बताने वाले?

अरविंद शेष और राउंड टेबल इंडिया (Arvind Shesh & Round Table India) संदर्भ में मनमानी छेड़छाड़ के जरिए दुराग्रहों और धूर्त कुंठाओं का निर्लज्ज प्रदर्शनबाबा साहेब आंबेडकर के खिलाफ राजकमल प्रकाशन और अशोक कुमार पांडेय का दुराग्रही एजेंडा और धूर्ततापूर्ण अभियान इतिहास की किताब कोई कविता, कहानी, उपन्यास या गल्प लेखन नहीं है, जिसके पाठक अपनी सुविधा और समझ के […]

क्या सैयदवाद ही ब्राह्मणवाद है?

अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) मुस्लिम समाज में जातिवादी व्यवस्था पूरी तरह से मौजूद है पर आज तक किसी सैयद ने सैयदवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने इस आधार पर पसमांदा समाज की ज़िन्दगी में हर पहलु पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ बात नहीं की है। यह कहना न होगा कि ऊँच-नीच और सामाजिक बहिष्कार भारतीय समाज के जातिवाद […]

कवि कृष्णचंद्र रोहणा की रचनाओं में सामाजिक न्याय एवं जाति विमर्श

Deepak Mevati

डॉ. दीपक मेवाती (Dr. Deepak Mewati) सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मानव के विकास में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की जानी चाहिए। सामाजिक न्याय की अवधारणा का अर्थ भारतीय समाज […]

भारत के दलित मुसलमान- किताब समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) पुस्तक : भारत के दलित मुसलमान; खंड 1-2 लेखक : डॉक्टर अयूब राईन प्रकाशन :  खंड 1 हेरिटेज प्रकाशन, खंड-2 आखर प्रकाशन मूल्य  :  300 रु (प्रति खंड) Emai l:   draiyubrayeen@gmail.com मुस्लिम समाज में जात-पात की बात की जाती है तो इसे सिरे से नकारते हुए इक़बाल का कोई शेर सुना दिया जाता है या कुरआन […]

मैं, मैला उठाने वाला, तुम्हारा वोट बैंक नहीं हूँ!!

Dhamma

  धम्म दर्शन निगम (Dhamma Darshan Nigam) हाथ से मैला साफ़ करने वालो का जीवन जातिगत छुआछूत, महिलाओं पर अत्त्याचार, गन्दगी और अपमान से भरा हुआ है। जो खुद को “ताकतवर” समझने लगते हैं जब राजनेता उन्हें वोट बैंक के रूप में देखते हैं। लेकिन, मैला साफ़ करने वालों के जीवन, अभिलाषाओं, और उनके रहन-सहन को सही मायनों में समझे […]