भारतीय इतिहास के क्रांतिसूर्य, महामानव बिरसा मुंडा

Surya Bali

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’ (Dr. Surya Bali ‘Suraj Dhurve) भारतीय इतिहास में सूर्य के समान अलौकिक, प्रतिभाशाली, महानायक और परमवीर भगवान बिरसा मुंडा का आज जन्मदिन है। आज के ही दिन यानी 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची जिले के उलीहाटा गांव में आपका धरती पर अवतरण हुआ था। आपकी माता का नाम करमी हातू और पिता का […]

गुरु नानक देव और धार्मिक-सामाजिक क्रांति

Sanjay Shraman Jothe 3 7 19

संजय जोठे (Sanjay Jothe) गुरु नानक इस देश में एक नयी ही धार्मिक-सामाजिक क्रान्ति और जागरण के प्रस्तोता हैं। पूरे मध्यकालीन संत साहित्य में जिन श्रेष्ठताओं का दर्शन बिखरे हुए रूप में होता है उन सबको नानक एकसाथ एक मंच पर ले आते हैं। उनकी परम्परा में बना गुरु ग्रन्थ साहिब इतना इन्क्लूसिव और ज़िंदा ग्रन्थ है कि उसकी मिसाल […]

मैं तुम्हें मैली मिट्टी में बदल सकती हूं… (धम्म दर्शन की कवितायेँ)

Dhamma

धम्म दर्शन निगम (Dhamma Darshan Nigam)   1. जननी मैं जननी इस संसार की आज तलाश में अपनी ही पहचान की अपने ही पेट से चार कंधों के इन्तजार तक!! पहचान मिली भी तो आश्रित रहने की बचपन में पिता पर जवानी में पति पर और बुढ़ापे में बेटे पर पूरी उम्र आश्रित अपनी ही पैदा की गई जात पर […]

परिवर्तन के मायने और मान्यवर कांशी राम साहब

Kundan

कुंदन मकवाना (Kundan Makwana) बहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम मतलब गौतम बुद्ध से लेकर संत गुरु रविदास, कबीर से होकर ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज, और बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तन के आन्दोलन का निचोड़ है. जरा सोचकर देखिये, बहुजन समाज के एक सामान्य परिवार में जन्मा व्यक्ति, अपने ऐतिहासिक संकल्प, त्याग और मेहनत की […]

‘रविदास मंदिर’ मामला केवल मंदिर मामला नहीं था

Manoj Teena

मनोज सिंह शोधार्थी, टीना कर्मवीर (Manoj Singh, Teena karamveer) भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू होता है जहाँ  से धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा परिलक्षित होती है. इस अवधारणा की विरासत हम रविदास और कबीर दास की विचारधारा में खोज सकते हैं. जहाँ पर उन्होंने राजनीति से परे रखा तथा सर्व धर्म समभाव की बात की तथा निर्गुण भक्ति की अवधारणा […]

रावेन और रावण के भ्रम में उलझता कोइतूर समाज

Surya Bali

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’ (Dr. Surya Bali ‘Suraj Dhurve) किसी भी संस्कृति में उसके नायकों और प्रतीकों का सम्मान व् स्वागत उस संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए आवश्यक होता है. इन्ही नायकों को जीवित रखने के लिए तरह तरह के आयोजन, पर्व और तीज त्योहारों का आयोजन किया जाता है. ऐसे ही एक पौराणिक कथानक रामायण […]

साहब कांशी राम का मिशन अधूरा, कैसे हो पायेगा पूरा ?

satvendra madara

सतविंदर मदारा (Satvendar Madara)   इस ९ अक्टूबर को साहब कांशी राम का १३वां परिनिर्वाण दिवस है। उनके जाने के बाद, जो लहर उन्होंने शुरू की; आज वो किस हालत में है ? बहुजन समाज को इस देश के हुक्मरान बनाने का जो सपना उन्होंने देखा था, क्या वो पूरा हो सका ? अगर नहीं, तो फिर उसके क्या कारण […]

कांग्रेस में समान प्रतिनिधित्व की अभिलाषा में पिछड़ा वर्ग

Devi Prasad HCU

देवी प्रसाद (Devi Prasad) मुझे अभी भी याद है बचपन का वो दिन जब ग्रामीण दलित-बहुजन महिलाएं स्थानीय भाषाओं में लोकगीत गाते हुए वोट डालने जाती थी, और गाने का मुखड़ा होता था- “चला सखी वोट दय आयी, मुहर ‘पंजा’ पर लगाई.” दलित-बहुजन समाज पर अनेक लेख पढ़ने-लिखने के पश्चात मेरा ध्यान उन गाती हुयी ‘मतदाताओं’ और उस समाज के […]

रावण के बहाने से कोइतूर व्यवस्था में ब्राह्मणवाद की घुसपैठ

Surya Bali

डॉ सूर्या बाली (Dr. Surya Bali) आजकल एक बात देखने में आ रही है कि लोग रावण को कुछ ज्यादा ही महत्व दे रहे हैं और रावण को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो रहे हैं. और तरह-तरह की कहानियां, किस्से, धार्मिक विश्लेषण, मूर्ति और मंदिर इत्यादि के द्वारा रावण को पुनः प्रतिस्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा […]

फर्जी एकता की अशराफिया डुगडुगी बनाम पसमांदा सवाल

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) पिछले साल बुलंदशहर में इस्लामी धार्मिक महासम्मेलन के लिए करोड़ों मुसलमान एकत्रित हो गए. इससे एक बात तो साबित होती है कि मुस्लिम समाज पर आज भी उलेमाओं की पकड़ मज़बूत है, जिनकी तक़रीर को सुनने के लिए 1 करोड़ लोग भी आ सकते हैं पर अब दूसरा और ज़रूरी सवाल यह किया जाए कि इस […]