जूपाका सुभद्रा (Joopaka Subadra) जूपाका सुभद्रा से बातचीत का यह (पहला) भाग भारत नास्तिका समाजम और साइंटिफिक स्टूडेंट्स फेडरेशन द्वारा आयोजित एक बातचीत में उन्होंने रखा था. आज मैं जिस विषय पर बात करने जा रही हूँ, वह है ‘पितृसत्ता, नारीवाद और बहुजन महिलाएँ’! नारीवादियों के अनुसार, नारीवाद, महिलाओं और पुरुषों के बीच, समानता को लेकर है, और, समानता के लिए है. वे कहती हैं, सभी महिलाएं […]
पाताल लोक, और स्वर्ग लोक में पसरी सड़ाँध (समीक्षा)
इस्तिखार अली (Istikhar Ali) हाल ही में, अमेज़न प्राइम पर पाताल लोक, एक वेब सिरीज़ रिलीज हुआ जो तुरंत चर्चा में आ गया. इसकी तुलना दर्शक ‘सेक्रेड गेम्स’ से भी कर रहे है। पाताल लोक दर्शकों पर अलग छाप छोड़ रहा है। मुख्यतः इसने हिन्दी भाषा बोलने-समझने वाले समाज में बहुत से लोगों का ध्यान अपनी और खींचा है. जिस […]
क्यूँकि मैं आदिवासी हूँ!
डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे” (Dr. Surya Bali “Suraj Dhurve”) “हे सन वेक अप“ कानों में डैडी की आवाज़ गूंजी मुँह से अपने आप निकला- गुड मार्निंग डैड, गुड मार्निंग मॉम! यही है मेरा सनातनी सेवा जोहार क्यूँकि मैं आदिवासी हूँ! आज संडे है सुबह से ही घर में हलचल है सब लोग जल्दी में हैं, तैयार हो रहे हैं […]
अंतर्द्वंद से जूझती उत्तर भारत की समाजवादी राजनीति
आकाश कुमार रावत (Akash Kumar Rawat) एक विचार अथवा वैचारिक राजनीति तब ज्यादा कमज़ोर हो जाती है, जब उस विचार को जन्म देने वाले और पोषित करने वाली शक्तियाँ ही उस पर अपना विश्वास छोड़ देती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी व्यक्ति को अपने विचार का प्रचार प्रसार करने और दूसरों से भी यह उम्मीद करना कि […]
क्या पसमांदा शब्द पर पुनः विचार करने की ज़रुरत है?
खालिद अनीस अंसारी (Khalid Anis Ansari) इधर कुछ दिनों से एक व्हाट्सएप ग्रुप में पसमांदा शब्द पर चल रही भीषण बहसों को देख रहा था. ग्रुप में कुछ लोगों की राय थी कि पसमांदा शब्द पर दोबारा सोचने की ज़रुरत है क्योंकि यह पिछड़ेपन को दर्शाता है और ऐसी मानसिकता के साथ विकास संभव नहीं है. मैं अपने सीमित अनुभव […]
शांति स्वरूप बौद्ध: एक उत्कृष्ट बहुजन योद्धा
मनोज अभिज्ञान (Manoj Abhigyan) 06 जून, 2020 को मेरे मोबाइल पर एक दुखद समाचार आया कि बौधाचार्य शांति स्वरूप बौद्ध नहीं रहे। वह 71 वर्ष के थे। पिछले कई दिनों से वह दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में कोरोना वायरस की बीमारी से लड़ रहे थे। जीवन में आने वाली सभी परेशानियों और चुनौतियों से निपटने वाला योद्धा […]
मीडिया मैनेजमेंट बनाम महामारी मैनेजमेंट- कौन किस पर भारी
मोहम्मद जावेद अलिग (Mohammad Javed Alig) देश में कोरोनावायरस की दस्तक देने से लेकर आजतक गोदी मीडिया महामारी का मुकाबला मीडिया मैनेजमेंट करने की कोशिश में जी-जान से जुटा हुआ है. आखिर जुटे भी क्यों न क्योंकि यही मौके होते हैं गोदी पत्रकारों के अपने नंबर बढ़ाने के. भारत का गोदी मीडिया इस जानलेवा महामारी का मुकाबला मीडिया मैनेजमेंट से […]
उर्दू अदब के पसमांदा सवाल
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) मेरा भाई अल्तमश मुझे आज कल बहुत से नए शायरों से रूबरू करा रहा है. यह शायर इतने प्रगतिशील और क्रांतिकारी हैं कि ये “ख़ुदा की ज़ात” पर भी शेर लिखने से नहीं डरते. लेकिन इन में से किसी का भी शेर ‘जाति व्यवस्था’ के ख़िलाफ़ मैंने नहीं पढ़ा है. ऐसा कैसे मुमकिन है कि वह […]
क्या दुख ही बुद्ध की शिक्षाओं का केन्द्रीय विषय है? – बुद्ध धम्म दृष्टि- भाग 1
बुद्ध धम्म दृष्टि – भाग 1 (संजय श्रमण की कलम से) संजय श्रमण जोठे (Sanjay Shraman Jothe) चार अरिय सत्य उन चार तीलियों की तरह हैं जो धम्मचक्र को उसकी धुरी से जोड़कर गतिमान रखती हैं। धम्मचक्र की धुरी ‘अनित्यता’ के दर्शन मे है, यही अनित्यता की दृष्टि जब भौतिक जगत से मनोजगत में प्रवेश कर जाती है तब ‘अनत्ता’ का […]
इर्रफान ने आपके ढोंग की पुंगी बजा दी है
मनीष कुमार चांद (Manish Kumar Chand) आजकल अशरफ समाज के पढ़े-लिखे लड़के धार्मिक सुचिता और कट्टरता की बात क्यों करते हैं? दरअसल, वे चाहते हैं कि समाज में अलगाव पैदा हो, जिससे गरीब और हैसियत विहीन लोग समाजिक अलगाव और अत्याचार के शिकार हों. इससे इनको दो फायदे है – पहला- अजलाफ, यानि छोटी जाति और अरजाल, यानि जाति व्यवस्था […]