चंचल कुमार (Chanchal Kumar) जब हम बड़े हो रहे थे इस दौरान हमारे माता-पिता ने जाति पर किसी भी स्पष्ट चर्चा से हमें बचा लिया, शायद यह मानते हुए कि अगर इस दानव के बारे में बात ही न की जाए तो इसका अस्तित्व खुद ही समाप्त हो जाएगा. इसे देखने का एक और तरीका यह हो सकता है कि […]
संगठनात्मक-नेतृत्व के सिवा कोई करिश्मा दलित-राजनीति के किसी काम का नहीं
राहुल सोंनपिंपले (Rahul Sonpimple) करिश्मा मायावी दुनिया का शब्द है लेकिन नेतृत्व को परिभाषित करने के लिए यह शब्द आम इस्तेमाल होता है. करिश्माई नेतृत्व को आमतौर पर आवश्यक और सहमति के रूप में लिया जाता है, खासकर राजनीति में. हालांकि, करिश्माई नेतृत्व का इतिहास इस तरह के रोमांसवाद को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकता है. हिटलर के […]
भारत सरकार को चाहिए कि एक लाख एससी-एसटी युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजे
अंशुल कुमार (Anshul Kumar) महल के शिखर पर बैठे पुरुष “तो , मैं एक दिन लिनलिथगो के पास गया और शिक्षा पर होने वाले खर्च के बारे में कहा, “यदि आप क्रोधित न हों तो मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मैं पचास [हाई स्कूल] स्नातकों के बराबर हूँ, है ना?” उसे (लिनलिथगो को) इसके लिए राजी होना पड़ा। फिर […]
जाति, और भारतीय कानूनी व्यवस्था की विफलता
रचना गौतम (Rachna Gautam) प्रत्येक सभ्य समाज में समाज के समुचित शासन के लिए कानून की अनिवार्य आवश्यकता होती है. मनुष्य होने के कारण लोग तर्कसंगत होते हैं और उस दिशा में आगे बढ़ते हैं जो उनके हित को सर्वोत्तम रूप से पूरा कर सके, और विभिन्न रुचियों वाले कई लोगों की एक साथ उपस्थिति के कारण हो सकता है […]
तब्लीग़ी जमात से दुनिया और आख़िरत की बात
डॉ. अयाज़ अहमद (Dr. Ayaz Ahmad) सालों बाद कल तब्लीग़ी जमात के दो सिपाहियों से एक बार फिर आमना सामना हो ही गया. हुआ यूँ की शाम के वक़्त सोसाइटी पार्किंग के पास एक पड़ोसी से पार्किंग झमेलों पे बात चल रही थी. तभी चार जमाती सिपाही दो बाइक्स से पार्किंग के पास उतरे. उनकी नज़र हमारे पड़ोसी पे शायद […]
अर्ध सत्य और समानांतर सिनेमा के आधे-अधूरे सत्य
राहुल गायकवाड (Rahul Gaikwad) तो उस दिन, मैं बस यही सोच रहा था कि इस समाज में भ्रष्टाचार विरोधी भाषणबाजी कैसे और कब से चलन में आई। मुख्यधारा के मीडिया द्वारा समर्थित अन्ना हजारे और केजरीवाल की जोड़ी के नेतृत्व में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन अभियान’ के दौरान हमने इसे बदसूरती के पूर्ण चरम पर देखा। अचानक, मुझे फिल्म ‘अर्ध सत्य’ […]
मैंने पसमांदा कार्यकर्ता बनने का फैसला क्यों किया
रज़ाउल हक़ अंसारी (Razaul Haq Ansari) शुरुआत करने के लिए, मैं अपने बारे में कुछ कहना चाहता हूँ. मैं झारखंड के देवघर से रज़ाउल हक़ अंसारी हूँ जो कि एक जुलाहा (बुनकर) जाति के एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुआ. मैंने ग्रेटर नोएडा (एनसीआर) के एक निजी विश्वविद्यालय से प्रौद्योगिकी स्नातक (Bachelor of Technology) की पढ़ाई पूरी की है. […]
संतराम बी.ए. का सामाजिक आन्दोलन
डॉ. बाल गंगाधर बाग़ी (Dr. Bal Gangadhar Baghi) बाबा साहब “जातिभेद का विनाश” जैसा लेख जिसके निमंत्रण पर लिखे थे उस मशहूर हस्ती का नाम सन्तराम बी.ए. था जिनका जन्म प्रजापति कुम्हार जाति में 14-02-1887 में हुआ था और मृत्यु 31-05-1988 को हुई. संतराम बी.ए. का जन्म बसी नामक गांव होशियारपुर, पंजाब में हुआ था. इनके पिता का नाम रामदास […]
उत्तर प्रदेश में लोकतान्त्रीकरण की प्रक्रिया में बहुजन समाज पार्टी का योगदान
जातीय वर्चस्व और लोकतंत्र विनोद कुमार (Vinod Kumar) उत्तर प्रदेश सामाजिक रूप से एक ऐसा राज्य है जहाँ सामंतवाद, और सवर्ण वर्चस्व का बोलबाला है. एक तरफ जहाँ राज्य के संसाधनों (जमीन, व्यवसाय, उद्योग) पर इन्ही सामंती जातियों का कब्ज़ा है तो दूसरी तरफ एक बहुसंख्यक बहुजन समाज मात्र श्रमिक बने रहकर ही सदियों से अपनी आजीविका चलाता आया है. […]
हिन्दू राष्ट्रवाद सदी का सबसे बड़ा झूठ
के.सी. सुलेख (K. C. Sulekh) राष्ट्रवाद उस सामूहिक जज्बात का नाम है जो एक देश/इलाके के निवासियों को अपने साझे हितों की सुरक्षा के लिए जोड़कर रखता है. अलग अलग देशों में रहने वाले लोगों के स्थानीय हालातों के मुताबिक धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षात्मक हित अलग अलग हो सकते हैं जो कई बार आपसी झगड़ों और, यहाँ तक […]