‘जोजो रैबिट’: अंधभक्तों को आईना | फिल्म समीक्षा | बहुजन दृष्टिकोण

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) सबसे पहले मैं आपको अपना एक किस्सा सुनाता हूँ। बात बहुत पुरानी नहीं है, हुआ यूँ कि मुझे सरकारी स्कूल में पहली बार बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाने का मौक़ा मिला था। शायद वह 8th-D की क्लास थी, विषय था ‘हाशिये का समाज’। ब्लैक बोर्ड पर मैंने चॉक से एक शब्द लिखा ‘मुसलमान’ और बच्चों से […]

‘जय भीम’ : व्यवस्था के दायरे, उलझी उम्मीद और हाशिये पर चेतना का संघर्ष

अरविंद शेष (Arvind Shesh) परदे पर कोई कहानी फिल्म हो सकती है, डॉक्यूमेंटरी हो सकती है या फिर बायोग्राफी हो सकती है। देश और काल के मुताबिक इसके दर्शक वर्ग अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन फिल्म विधा में होने वाले लगातार प्रयोगों का यह हासिल जरूर हुआ है कि फिल्म और बायोग्राफी का दर्शक वर्ग अब मिला-जुला होने लगा है। […]

साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की स्मृति में संगोष्ठी व सम्मान समारोह

नरेन्द्र वाल्मीकि (Narendra Valmiki) ओमप्रकाश वाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर साहित्य चेतना मंच, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) उनके नाम पर दलित साहित्य में उत्कृष्ट योगदान करने वाले रचनाकारों को ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। साचेम ने इसकी शुरुआत वर्ष 2020 से की है। इस सम्मान में प्रतिवर्ष दस रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है। इस […]

थर्ड डिग्री टॉर्चर यानी यातना और जुल्म के चरम का दृश्य-प्रभाव

संदर्भः फिल्मों में पीड़ित पात्रों के खिलाफ क्रूरता का दृश्यांकन अरविंद शेष (Arvind Shesh) अगर कोई इंसान या तबका लगातार अपने आसपास अपने लोगों पर जुल्म ढाए जाते हुए देखे, चरम यातना का शिकार होते देखे तो उस पर क्या असर होगा? प्राकृतिक या कुदरती तौर पर इंसान निडर ही पैदा होता है, लेकिन कुदरत उसे खुद को बचाने के […]

पूना पैक्ट और एक दलित-मुख्यमंत्री

डॉ. जस सिमरन कहल  (Dr. Jas Simran Kehal) साहित्य के माध्यम से पूना-पैक्ट पर फिर से विचार करते हुए, मैं सोच रहा था कि इस संधि पर हस्ताक्षर करने से पहले डॉ अम्बेडकर का दिमाग कैसे काम कर रहा होगा। दलित वर्गों के हितों की रक्षा करते हुए उस तरह की कठिन सौदेबाजी को अकेले ही प्रबंधित करने के लिए […]

गुरु नानक देव और धार्मिक-सामाजिक क्रांति

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संजय जोठे (Sanjay Jothe) गुरु नानक इस देश में एक नयी ही धार्मिक-सामाजिक क्रान्ति और जागरण के प्रस्तोता हैं। पूरे मध्यकालीन संत साहित्य में जिन श्रेष्ठताओं का दर्शन बिखरे हुए रूप में होता है उन सबको नानक एकसाथ एक मंच पर ले आते हैं। उनकी परम्परा में बना गुरु ग्रन्थ साहिब इतना इन्क्लूसिव और ज़िंदा ग्रन्थ है कि उसकी मिसाल […]

डाॅ. अम्बेडकर का जीवन दर्शन ही मेरे जीवन का प्रेरणा स्रोत- कैलाश वानखेडे

डॉ. रत्नेश कातुलकर कैलाश वानखेड़े जी अपने प्रथम कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ से हिंदी साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान के रूप में उभरे हैं. उनकी कहानियों की ज़मीन व्यापक बहुजन आन्दोलन है. कहानियों के पात्र गाढ़ी स्याही से हस्ताक्षर करते हैं. कई जगहों पर उनकी कहानियों को लेकर कार्यक्रम रखे गए. कहानियों का पाठ हुआ. उन्हीं की एक कहानी ‘जस्ट […]

शुक्रिया बाबा साहेब

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Gurinder Azad गुरिंदर आज़ाद शुक्रिया बाबा साहेब !आपके चलतेहमें किसी से कहना नहीं पड़ताकि हम भी इंसान हैं ! उनके अहं को जो भी हो गवारालेकिन अब तस्दीक हो चुका हैकि बराबरी थाली में परोस कर नहीं मिलतीआबरू की धारा किसी वेद से नहीं निकलतीबड़ा बेतुका हैकल्पना करके सोनासुबह अलग सा कोई नज़ारा होगाया धीरे धीरे सब सही हो जायेगाअपनेआप […]

श्रद्धांजलि शब्द-संस्मरण – ओम प्रकाश वाल्मीकि जी को समर्पित

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कैलाश वानखेड़े लेखक, कहानीकार, कवि एवं दलित चिंतक ओम प्रकाश वाल्मीकि जी के निधन पर लेखक कैलाश वानखेड़े द्वारा संकलित श्रद्धांजलि सन्देश जो कि फेसबुक पर लोगों ने वाल्मीकि जी को याद करते हुए लिखे. ~ मेरे पिताजी का देहांत 1 मार्च 1983 को हो गया था. मेरा जन्म 01-03-1973 का है, हिसांब लगा लें कि मेरी उम्र उस समय […]