मैं जब भी देखती हूँ…

करुणा (Karuna) (1) मैं जब भी देखती हूँ मेरेमैं जब भी देखती हूँ मेरे समाज की किसी महिला कोसिर पर उपले उठाकर ले जाते हुए मुझे रमाई याद आती है मैं जब भी देखती हूँ किसी महिला को खेतों में धान रोपते या काटते हुए मैं जब भी देखती हूँ मेरी माँ को किफ़ायत में घर को चलाते हुए संकोच […]