ओबेद मानवटकर (Obed Manwatkar) लेखक ब्रज रंजन मणि जी की प्रसिद्ध कविता ‘किसकी चाय बेचता है तू?’ की तर्ज़ पर हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? बात-बात पे नाटक क्यूँ करता है तू? पकोड़े वालों को क्यों बदनाम करता है तू? साफ़ साफ़ बता दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? खून लगाकर अंगूठे […]
तेलुगु कहानी संग्रह ‘रायाक्का मान्यम’ में दलित नारी चेतना का स्वर
डी. अरुणा (D. Aruna) दलित कहानियों में सामाजिक पीड़ाएँ एवं शोषण के विविध आयाम खुलकर तर्कसंगत रूप से अभिव्यक्त हुए हैं। ग्रामीण जीवन में दलित अशिक्षित होने के कारण उन पर अधिक अत्याचार और शोषण किया जा रहा है। वह किसी भी देश और समाज के लिए शर्मिंदगी की बात है। दलितों पर हजारों साल की उत्पीड़न से जो […]
‘जाति’ और ‘नस्ल’; दो अलग व्यवस्थाएं लेकिन अनगिनत समानताएं
सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) यूरोपीय मूल के लोगों द्वारा अफ्रीकी मूल के अश्वेत लोगों के साथ किया जाने वाला नस्लीय भेदभाव हो या भारतीय उपमहाद्वीप की पिछड़ी और अनुसूचित जातियों का ब्राह्मणों द्वारा किया जाने वाला जातीय भेदभाव। ऊपरी तौर पर अलग दिखने के बावजूद, बुनियादी तौर पर यह लगभग एक ही तरह की गैर-बराबरी पर आधारित है। इन […]
कश्मीर में जातिवाद: मेरा अवलोकन एवं अनुभव
मुदासिर अली लोन (Mudasir Ali Lone) जब भी कोई कश्मीर में जातिवाद की बात करता है तो हम अक्सर “नही” में अपना सिर हिलाते हैं। अगर आप डरावनी कहानियाँ सुनने के मूड में हैं तो आप कश्मीर में ग्रिस्त (खेती बाड़ी करने वाले) जाति के लोगों से मिलें और उनसे पूछें कि मल्ला/पीर/सैयद (उच्व जाति) उनके साथ कैसा बर्ताव करतें […]
स्वतंत्र मंच से हुआ विभिन्न बुलंद आवाज़ों का आगाज़
सुमन देवठिया (Suman Devathiya) ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच (दिल्ली) की ओर से दिनांक 19-20 दिसम्बर 2017 को सावित्री बाई फूले यूनिवर्सिटी, पूना के परिसर में एक ऐतिहासिक ‘दलित महिला स्पीक आउट कॉन्फ्रेंस’ का आयोजन किया गया. इस कॉन्फ्रेंस में भारत के विभिन्न राज्यों के विभिन्न भागों से अपने मुद्दों के साथ 450 के लगभग दलित महिलाओं ने अपनी […]
पश्चिमी दार्शनिक और भारतीय पोंगा पंडित, एक नजर में
संजय जोठे (Sanjay Jothe) बहुजन (ओबीसी, दलित,आदिवासी, अल्पसंख्यक) समाज को अपनी पहचान और अपना नाम खुद तय करना चाहिए। किसी अंधविश्वासी, शोषक, असभ्य और बर्बर जमात को यह अधिकार क्यो दिया जाए कि वो हमारा नाम तय करें? एक उदाहरण से सनझिये। अक्सर मांस खाने वालों को नॉन-वेजिटेरियन कहा जाता है। अब नॉन-वेजिटेरियन क्या होता है? क्या वो कभी […]
मिले मुलायम कांशी राम, हवा हो गए जय श्री राम
सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) 6 दिसंबर 1992 को बाबासाहब के परिनिर्वाण दिवस पर, जब देश की ब्राह्मणवादी ताक़तों ने बाबरी मस्जिद को गिराया, तो राजनीतिक हालात तेजी से बदले। उत्तर प्रदेश इसके केंद्र में था। राम मंदिर के नाम पर पिछड़ी जातियों का मुसलमानों के खिलाफ ध्रुवीकरण करके महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों का संगठन RSS, राज्य और देश की […]
मराठी और हिंदी दलित आत्मकथाओं में स्त्री चिंतन
डी. अरुणा (D. Aruna) आत्मकथा में आत्म का सम्बन्ध लिखने वाले से है और कथा का सम्बन्ध उसके समय और परिवेश से है. कोई लेखक जब अपने विगत जीवन को समूचे परिवेश के साथ शब्दों में बाँधता है तो उसे हम आत्मकथा कहते हैं. हिन्दी में अन्य विधाओं की तुलना में आत्मकथा कम ही लिखी गई है परन्तु पिछले […]
जननायक कर्पूरी ठाकुर: अपमान का घूँट पीकर बदलाव की इबारत लिखने वाला योद्धा
जयन्त जिज्ञासु (Jayant Jigyasu) पिछड़ों-दबे-कुचलों के उन्नायक, बिहार के शिक्षा मंत्री, एक बार उपमुख्यमंत्री (5.3.67 से 31.1.68) और दो बार मुख्यमंत्री (दिसंबर 70 – जून 71 एवं जून 77- अप्रैल 79) रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर (24.1.1924 – 17.2.88) के जन्मदिन की आज 94वीं वर्षगांठ है। आज़ादी की लड़ाई में वे 26 महीने जेल में रहे, फिर आपातकाल के दौरान […]
अशराफिया समाज के बोल – समुद्र में अदहन
एम्.इकबाल अंसारी (M. Iqbal Ansari) कभी कभी ज़िन्दगी में ऐसी घटनाएँ, ऐसी बातें देखने व् सुनने को मिल जाती हैं जो दिल दिमाग में गहराई तक चोट करती हैं. ऐसी ही कभी न भूलने वाली सवर्ण मुस्लिम शिक्षक द्वारा की गई व्यंग्य पर आधारित यह प्रसंग समुन्द्र में अदहन [अदहन माने ‘खौलता हुआ पानी ‘(भोजन आदि के लिये)] वाला […]