गालियों का समाजशास्त्र

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) गालियाँ लगभग हर भाषा हर ज़ुबान में मौजूद है. तो क्या गालियाँ भाषा की सामाजिकता का अनिवार्य हिस्सा है? शायद हाँ! भाषा की सामाजिकता उसको बोलने वालों के बीच के अंतर्संबंधों को ज़ाहिर करती है और गालियों का जातिये एंव लैंगिक चरित्र की भी व्याख्या भी करती है. इसीलिए जब अनुराग कश्यप से पूछा गया कि […]

“दलित” शब्द एक साजिश या भूल?

satvendra madara

  सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) आज बहुत सारे अनुसूचित जाति के युवाओं में तेजी से बढ़ रहा “दलित” शब्द के प्रति लगाव भारी चिंता का विषय है। ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई अमानवीय जाति व्यवस्था के विरोध में जब आधुनिक भारत में पहली बार महात्मा जोतीराव फुले ने विद्रोह किया, तो उन्होंने सारे OBC, SC, ST जातियों की गोलबंदी, शूद्र और […]

जेल से लालूजी की आम जन को लिखी चिठ्ठी

lalu prasad yadav

  मेरे प्रिय बिहारवासियों, आप सबों के नाम ये पत्र लिख रहा हूँ और याद कर रहा हूँ अन्याय और ग़ैर बराबरी के खिलाफ अपने लम्बे सफ़र को, हासिल हुए मंजिलों को और ये भी सोच रहा हूँ कि अपने दलित पिछड़े और अत्यंत पिछड़े जनों के बाकी बचे अधिकारों की लड़ाई को. बचपन से ही चुनौतीपूर्ण और संघर्ष से […]

अंबेडकरवाद के ध्वजवाहक: डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन

ratnesh katulkar

(5 January 1905 – 22 June 1988) डॉ रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन हिंदी और पाली भाषा के मूर्धन्य विद्वान और डॉ आंबेडकर मिशन के एक ऐसे ध्वजवाहक थे जिन्होंने अपनी किताबों, अनुवादों और प्रचार के द्वारा बाबासाहेब के मिशन को आमजन के बीच स्थापित किया. भारत में आम्बेडकरवाद को स्थापित करने में इनकी अहम भूमिका […]

धार्मिक द्वंद से आगे: यूनिफार्म सिविल कोड की ओर

Ayaz Abhijit

अयाज़ अहमद (Ayaz Ahmad) अभिजीत आनंद (Abhijit Anand) कुछ माह पहले ही तीन तलाक़ को अवैध घोषित कर के माननीय उच्चतम न्यायालय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधारों की आवश्यकता पर एक सार्थक बहस की शुरुआत की थी। लेकिन पितृसत्तावादी कट्टरपंथी शुरू से ही इस फ़ैसले को सामाजिक स्तर पर नाक़ाम करने पर तुले हुए हैं। जमीयत उलमा-ई-हिंद के जनरल […]

भारत का नैतिक पतन और ब्राह्मणवाद

sanjay sharman jothe

संजय जोठे (Sanjay Jothe) भारत का दार्शनिक और नैतिक पतन आश्चर्यचकित करता है. भारतीय दर्शन के आदिपुरुषों को देखें तो लगता है कि उन्होंने ठीक वहीं से शुरुआत की थी जहां आधुनिक पश्चिमी दर्शन ने अपनी यात्रा समाप्त की है. हालाँकि इसे पश्चिमी दर्शन की समाप्ति नहीं बल्कि अभी तक का शिखर कहना ज्यादा ठीक होगा. कपिल कणाद और पतंजली […]

द ट्रांस पर्सन्स बिल ‘2016′ के विरोध में उठती आवाज़

KUNAL RAMTEKE

प्रधानमंत्री जी को चिट्ठी लिखने की अपरिहार्यता का परिप्रेक्ष्य सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘द ट्रांस पर्सन्स (सुरक्षा एव अधिकार) बिल ‘2016‘ के विरोध में उठती आवाज़ कुणाल रामटेके (Kunal Ramteke) समकालीन भारतीय परीपेक्ष्य मे सामाजिक मानसपटल पर गहराते धर्म, वर्ण, जाति, वर्ग, लिंगभेद के संकट के बीच राज्यद्वारा प्रेरित तथा प्रस्थापित हिंसा ने व्यवस्था को पुनः कटघरे मे लाकर खड़ा कर […]

समाज का जनाज़ा : एक दलित के शव की यात्रा

ganpat rai bheel

   गणपत राय भील (Ganpat Rai Bheel) बदीन ज़िले में एक भील जाति के नौजवान की लाश को उसके क़ब्र से खोद कर बाहर निकाल कर फेंक दिया गया. यह अमानवीय कृत्य उच्चवतम पवित्रता के धार्मिक जोश में साहिबे ईमान(इस्लाम के सच्चे मानने वाले) वालों ने किया. दैनिक सिंध एक्सप्रेस में इसकी फ़ोटो और रिपोर्ट कुछ विस्तार के साथ छपी. […]

उर्दू अदब में जातिवाद

faqir

जय प्रकाश फ़ाकिर (Jay Prakash Faqir) मै DEMOcracy का एक बार फिर से शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मुझे मौका दिया इस विषय पे बोलने के लिए. मै अपनी बात इकबाल के इस शेर से ही शुरू करना चाहता हूँ- यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो तुम सभी कुछ हो बताओ मुसलमान भी हो? आप इस शेर […]

भोजपुरी भाषा-समाज और महिलाएं: लोकगीतों के अजायबघर के बाहर

asha singh 1

आशा सिंह (Asha Singh)  यह पर्चा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में 8-9 दिसंबर 2017 को CWDS  द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में पढ़ा गया था.  मेरे वक्तव्य का विषय है, ‘भोजपुरी भाषा–समाज और महिलाएं: लोकगीतों के अजायबघर के बाहर’. सबसे पहले ये चर्चा करने की ज़रुरत है कि क्या ज़रुरत आ पड़ी कि आज हम हिंदी में स्त्री–चिन्तन करने के […]