गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) एक बार कांशी राम साहेब कार में अपने सहयोगियों के साथ कहीं जा रहे थे. उनकी तबियत जरा नासाज़ थी. एक सहयोगी ने शायद साहेब को रिझाने के लिए कहा, ‘साहेब, कहिये, क्या चाहिए आपको? आप जो चाहोगे मैं वही पेश करूंगा आपके लिए.’ साहेब ने कहा, ‘क्या, सच में?’. ‘जी बिलकुल’, जोशीला जवाब आया. ‘तो मुझे कहीं से समय […]
बलात्कार ही तो हुआ है, तो क्या हुआ
सुरजीत गग (Surjit Gag) बलात्कार ही तो हुआ है तो क्या हुआ इंदिरा गाँधी थोड़े न मरी है जो सरकारी शह परकत्लेआम की इजाज़त दे दें! वह कौन-सा उस मनमोहन सिंह की बेटी थी जो कहता था-मैं भी बेटियों वाला हूँ! यहाँ तो ऐसे ही चलता है यहाँ तो ऐसे ही चलेगा जितनी मर्ज़ी कैंडलें फूंक लो जितनी मर्ज़ी छाती पीट […]
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दो कोइतूर महानायक बाप-बेटे
डॉ. सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’ (Dr. Suraj Bali ‘Suraj Dhurve’) भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य भारत के प्राचीन गोंडवाना की माटी ने हजारों वीर सपूतों को जन्म दिया है जो देश की आन, बान और शान के लिए कुर्बान हो गए हैं. उसी गोंडवाना की माटी में पैदा हुए दो वीर सपूतों का आज बलिदान दिवस है. वैभवशाली […]
‘कब तक मारे जाओगे’- वैचारिक आंदोलन का निर्माण करती कविताएँ
आर. डी. आनंद (R. D. Anand) युवा कवियों में बहुख्यातिप्राप्त कवि नरेंद्र वाल्मीकि द्वारा संपादित कविता-संग्रह “कब तक मारे जाओगे” वर्ष 2020 के जुलाई माह में सिद्धार्थ बुक्स, दिल्ली द्वारा प्रकाशित होकर हमारे हाथों में हैं. पुस्तक के प्रथम फ्लैप पर डॉ. जय प्रकाश कर्दम और द्वितीय पर डॉ. कर्मानंद आर्य की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ हैं. यह पुस्तक 240 पृष्ठों में […]
करम पर्व: प्राकृतिक दर्शन और सामुदायिक सहभागिता का महापर्व
डॉ. सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’ (Dr. Suraj Bali ‘Suraj Dhurve’) करम पर्व प्रकृति को संरक्षित और समृद्ध करने के साथ साथ कोइतूर जीवन को गति देने वाला त्योहार है. यह कोया पुनेमी1 पाबुन2 भादों उजियारी पाख की एकादशी और उसके आसपास मनाया जाता है. चूंकि यह उजियारी पाख का पर्व है इसलिए इसे पाबुन कहते हैं. करम पर्व यानि कर्मा त्यौहार […]
एक समाज जो बिस्तर पर स्वीकार्य किन्तु तथाकथित सभ्य समाज में नहीं
क्रांति खोड़े (Kranti Khode) भारतीय सामाजिक व्यवस्था जो कि चार्तुवर्ण पर आधारित है. यह मनुवादी चातुर्वण व्यवस्था कहती है कि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैष्य, शुद्र जो जिस जाति में पैदा हुआ वह उस जाति का जाति आधारित काम करेगा. उनका काम ऊपर के तीनों समाजों की सेवा करना है. यह व्यवस्था आज भी मजबूती से अपने पैर जमाए हुए है. शुद्र […]
1980 मुरादाबाद मुस्लिम नरसंहार: भाजपा ही मुस्लिम-विरोधी नहीं बल्कि सेकुलर और लेफ्ट का अतीत भी रक्तरंजित है
मोहम्मद जावेद अलिग (Mohammad Javed Alig) भारत में सांप्रदायिक दंगों का एक लंबा इतिहास रहा है. हालाँकि इन दंगों को नरसंहार कहना अधिक उचित होगा. ये सिलसिला पुराना है. अंग्रेजों द्वारा भारत को ‘सँभालने’ में सवर्ण तबके, खासतौर पर ब्राह्मणों का विशेष योगदान रहा है. ब्राह्मणवाद की ‘साम-दाम-दंड-भेद’ की नीतियों से ही “फूट डालो राज करो’ की नीति ने अपने […]
वीरांगना फूलन देवी का स्मरण प्रतिदिन करना चाहिए
रजत कुमार सोनकर (Rajat Kumar Sonkar) हमारे दलित बहुजन समाज में बहुत से समाज सुधारक और जाति-विरोधी आंदोलनकारी हुए जिनके संघर्ष और विजय की अनगिनत कहानियाँ हम जानते है। इन सघर्षो की सबसे रोचक बात यह रही है कि इसमें बहुजन महिलाओं और पुरुषों दोनों ने ही कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया है। ये एक गर्व का विषय है. […]
2021 में बहुजन किस धर्म की और रुख़ करेंगे?
सतविंदर मनख (Satvendar Manakh) 2021 में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों का धर्म क्या होगा? हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन? 2021 में अगली जनगणना होने जा रही है। इसमें पिछड़े, दलित, आदिवासी(OBC, SC, ST) क्या फिर से अपने को “हिन्दू” लिखवाएंगे? या जिस धर्म ने उन्हें शूद्र, अछूत, ग़ुलाम बनाया, वो इसे छोड़ “इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध या जैन” धर्म अपनाएंगे […]
विमुक्त माह- मुद्दों की आवाज़, संघर्ष का जश्न
सन 1952 से ही दिन 31 अगस्त विमूक्त दिन के रूप में मनाया जाता आ रहा है. यह दिन इसीलिए ज़रूरी है क्यूंकि इस दिन, क्रिमिनल ट्राइब एक्ट (CTA) 1871 के तहत, विमुक्त जनजातियों (Denotified Tribes) को “क्रिमिनल” यानी अपराधी होने के लांछन से मुक्त किया गया था. यूं कहिये कि इस दिन ख़ानाबदोश और विमुक्त जनजातियों को इस लांछन […]