करुणा (Karuna) (1) मैं जब भी देखती हूँ मेरेमैं जब भी देखती हूँ मेरे समाज की किसी महिला कोसिर पर उपले उठाकर ले जाते हुए मुझे रमाई याद आती है मैं जब भी देखती हूँ किसी महिला को खेतों में धान रोपते या काटते हुए मैं जब भी देखती हूँ मेरी माँ को किफ़ायत में घर को चलाते हुए संकोच […]
मैं एक दलित थी
विकास कुमार (Vikash Kumar) (हाथरस प्रकरण को याद करते हुए) मैं एक दलित थीइसलिए वर्दी वाले ‘रक्षकों’ नेएक अँधेरी रात में मुझे जलाकर गुनाहगारों इन्साफ परोस कर दियाअगर दलित न होती तो मैं जिंदा होती मेरे भी सपनों की परवाज़ आकाश छूती लेकिन मैं एक दलित थीइसलिए पूरा बरस बीत गया इन्साफ को मेरी राख का भी पता नहीं मिलाबरस […]
ब्राह्मण का एकेडेमिया (कविता)
(ओम प्रकाश वाल्मीकि जी की कविता ‘चूल्हा मिटटी का’ के बहाव व् अंदाज़ से प्रेरित एक कविता)विकास कुमार (Vikash Kumar)शिक्षक यूनिवर्सिटी कायूनिवर्सिटी सरकार कीसरकार ब्राह्मण कीपढ़ाई किताब कीकिताब लेखक कीलेखक प्रकाशक काप्रकाशक ब्राह्मण काशोधार्थी ब्राह्मण कामंच ब्राह्मण काइतिहास के पन्नों में जीवनी अपनीव्याख्या ब्राह्मण कीस्कूल ब्राह्मण कायूनिवर्सिटी ब्राह्मण कीप्रोफेसर ब्राह्मण कासीट-पोस्ट-कोर्ट ब्राह्मण काफ़िर अपना क्या?विद्यालय?महाविद्यालय?विश्वविद्यालय?~~~विकास कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक […]
जाने कब वो कल होगा
दीपक मेवाती ‘वाल्मीकि’ (Deepak Mevati ‘Valmiki’) मैं भी प्यार मोहब्बत लिखतालिखता मैं भी प्रेम दुलारलिखता यौवन की अंगड़ाईलिखता रूठ और मनुहारलिखता प्रकृति की भाषालिखता दुश्मन का मैं वारलिखता फूलों की मादकतालिखता नभमंडल के पार। पर नहीं सोच पाता है मनकुछ उससे आगे पार लिखूंसुरक्षित जीवन सबका हो जिससे बस उसका जीवन सार लिखूं। जहाँ की सोच लग जाता हैकपड़ा सबकी […]
क्यूँकि मैं आदिवासी हूँ!
डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे” (Dr. Surya Bali “Suraj Dhurve”) “हे सन वेक अप“ कानों में डैडी की आवाज़ गूंजी मुँह से अपने आप निकला- गुड मार्निंग डैड, गुड मार्निंग मॉम! यही है मेरा सनातनी सेवा जोहार क्यूँकि मैं आदिवासी हूँ! आज संडे है सुबह से ही घर में हलचल है सब लोग जल्दी में हैं, तैयार हो रहे हैं […]
5 अप्रैल की रात को 9 बजे, मैं…
मौलिकराज श्रीमाली (Maulikraj Shrimali) नीली आग की लपटें ————————- तुम्हारे आंसू गैस के गोलों से हमारी आँखे जल रही है और जल रहे है जाति-धर्म के हिंसा में हमारे घर भूख से जल रहा है वो पेट जो इक्कीस दिन के बाद… चल के अपने घर को पहुंचा है और जल रहा है मेरी बहन का […]
मैं तुम्हें मैली मिट्टी में बदल सकती हूं… (धम्म दर्शन की कवितायेँ)
धम्म दर्शन निगम (Dhamma Darshan Nigam) 1. जननी मैं जननी इस संसार की आज तलाश में अपनी ही पहचान की अपने ही पेट से चार कंधों के इन्तजार तक!! पहचान मिली भी तो आश्रित रहने की बचपन में पिता पर जवानी में पति पर और बुढ़ापे में बेटे पर पूरी उम्र आश्रित अपनी ही पैदा की गई जात पर […]
मैं दलित हूँ [एक कविता- एक घोषणापत्र]
विद्यासागर (Vidyasagar) मैं दलित हूँ और मुझे गर्व है मेरे दलित होने पर क्योंकि मैं पला हूँ कुम्हारों के चाकों पर,मैं पला हूँ श्मशानों के जलते राखों पर,मैं पला हूँ मुसहरों के सूखे कटे पड़े शाखों पर।मैं दलित हूँ क्योंकिमैंने देखा है अपनी माँ को धुप से तपते हुए खलिहानों में,मैंने देखा है अपने पिता को मोक्ष दिलवाते श्मशानों […]
हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? (कविता)
ओबेद मानवटकर (Obed Manwatkar) लेखक ब्रज रंजन मणि जी की प्रसिद्ध कविता ‘किसकी चाय बेचता है तू?’ की तर्ज़ पर हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? बात-बात पे नाटक क्यूँ करता है तू? पकोड़े वालों को क्यों बदनाम करता है तू? साफ़ साफ़ बता दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? खून लगाकर अंगूठे […]
किसकी चाय बेचता है तू (Whose Tea Do You Sell)
Braj Ranjan Mani किसकी चाय बेचता है तू ~ ब्रजरंजन मणि अपने को चाय वाला क्यूँ कहता है तू बात-बात पे नाटक क्यूँ करता है तू चाय वालों को क्यों बदनाम करता है तू साफ़ साफ़ बता दे किसकी चाय बेचता है तू ! खून लगाकर अंगूठे पे शहीद कहलाता है और कॉर्पोरेट माफिया में मसीहा देखता है […]