आक्रामकता, हिंदुत्व और ‘मोदी लहर’ का सच बनाम अखिलेश यादव की राजनीति

Devi Prasad HCU

देवी प्रसाद (Devi Prasad) भाजपा की स्थापना 6 अप्रैल 1980 में हुई थी. यह वही दौर था, जब मंडल कमीशन ने 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े वर्ग यानि देश की लगभग आधी आबादी को सामाजिक न्याय देने का सुझाव दिया था. हालांकि, ‘सॉफ्ट’ हिंदुत्वा’ की राह पर चलने वाली कांग्रेस ने कमंडल के डर से एक दशक तक मंडल कमीशन की […]

रिक एंड मोर्टी: सृष्टि, विज्ञान और इंसान (वेबसीरिज़ समीक्षा)

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) रिक एंड मोर्टी (Rick and Morty) एक अमेरिकी सिटकॉम (sitcom) है जिस को जस्टिन रोइलैंड (Justin Roiland) और डेन हारमॉन (Dan Harmon) ने बनाया है। 2013 से अब तक इसके पाँच दौर यानि सीज़नस (seasons) आ चुके हैं। पहली नज़र में यह सीरीज़ आप को बच्चों का कोई आम सा कार्टून नज़र आएगी पर यक़ीन करें […]

डोन्ट लुक अप’: धारणा निर्माण का एक और खेला

अरविंद शेष (Arvind Shesh) ‘डोन्ट लुक अप’ भी सुर्खियों में है। जो दौर चल रहा है, उसमें जो भी चीज सुर्खियों में हो, उस पर एक बार तो शक कर ही लेना चाहिए! दिमाग के ‘डिटॉक्सिफिकेशन’ (अंग्रेजी का एक शब्द जिसका अर्थ है गलत खानपान की वजह से शरीर में बन गए ज़हरीले तत्वों को निष्क्रिय करने के लिए लिए […]

सावित्री बाई फुले को उनके 191वें जन्मदिन पर याद करते हुए

डॉ सूर्या बाली “सूरज धुर्वे” (Dr. Suraj Bali ‘Suraj Dhurvey’) शिक्षा के महत्त्व को सावित्री बाई फुले ने जितनी व्यापकता से समझा उसकी मिसाल उनके पूरे जीवन में उनके द्वारा किये बाकमाल कार्यों से मिलती है. शिक्षा के ऐसे महत्त्व में उनके अपने निजी जीवन शिक्षा के चलते आये ज़बरदस्त परिवर्तन की छाप भी है. ये बात अब उनके समझ […]

द पियानिस्ट : जब कानून का पालन ही मानव त्रासदी का कारण बन जाए

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) द पियानिस्ट (The Pianist, 2004) रोमन पोलांस्की की होलोकॉस्ट (यहूदियों का जनसंहार) पर बनाई गई सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक है. यह फिल्म पोलिश पियानिस्ट व्लादिस्लाव स्पिलमैन (Wladyslaw Szpilman) की सच्ची घटना पर आधारित है. निर्देशक रोमन पोलांस्की ख़ुद एक होलोकॉस्ट सर्वाइवल थे, जिस का प्रभाव फ़िल्म की बारीकियों में नज़र आती है.  रोमन पोलांस्की ने इस फ़िल्म […]

मैं एक दलित थी

विकास कुमार (Vikash Kumar) (हाथरस प्रकरण को याद करते हुए) मैं एक दलित थीइसलिए वर्दी वाले ‘रक्षकों’ नेएक अँधेरी रात में मुझे जलाकर गुनाहगारों इन्साफ परोस कर दियाअगर दलित न होती तो मैं जिंदा होती मेरे भी सपनों की परवाज़ आकाश छूती लेकिन मैं एक दलित थीइसलिए पूरा बरस बीत गया इन्साफ को मेरी राख का भी पता नहीं मिलाबरस […]

‘जोजो रैबिट’: अंधभक्तों को आईना | फिल्म समीक्षा | बहुजन दृष्टिकोण

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) सबसे पहले मैं आपको अपना एक किस्सा सुनाता हूँ। बात बहुत पुरानी नहीं है, हुआ यूँ कि मुझे सरकारी स्कूल में पहली बार बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाने का मौक़ा मिला था। शायद वह 8th-D की क्लास थी, विषय था ‘हाशिये का समाज’। ब्लैक बोर्ड पर मैंने चॉक से एक शब्द लिखा ‘मुसलमान’ और बच्चों से […]

‘जय भीम’ : व्यवस्था के दायरे, उलझी उम्मीद और हाशिये पर चेतना का संघर्ष

अरविंद शेष (Arvind Shesh) परदे पर कोई कहानी फिल्म हो सकती है, डॉक्यूमेंटरी हो सकती है या फिर बायोग्राफी हो सकती है। देश और काल के मुताबिक इसके दर्शक वर्ग अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन फिल्म विधा में होने वाले लगातार प्रयोगों का यह हासिल जरूर हुआ है कि फिल्म और बायोग्राफी का दर्शक वर्ग अब मिला-जुला होने लगा है। […]

साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की स्मृति में संगोष्ठी व सम्मान समारोह

नरेन्द्र वाल्मीकि (Narendra Valmiki) ओमप्रकाश वाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर साहित्य चेतना मंच, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) उनके नाम पर दलित साहित्य में उत्कृष्ट योगदान करने वाले रचनाकारों को ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। साचेम ने इसकी शुरुआत वर्ष 2020 से की है। इस सम्मान में प्रतिवर्ष दस रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है। इस […]

थर्ड डिग्री टॉर्चर यानी यातना और जुल्म के चरम का दृश्य-प्रभाव

संदर्भः फिल्मों में पीड़ित पात्रों के खिलाफ क्रूरता का दृश्यांकन अरविंद शेष (Arvind Shesh) अगर कोई इंसान या तबका लगातार अपने आसपास अपने लोगों पर जुल्म ढाए जाते हुए देखे, चरम यातना का शिकार होते देखे तो उस पर क्या असर होगा? प्राकृतिक या कुदरती तौर पर इंसान निडर ही पैदा होता है, लेकिन कुदरत उसे खुद को बचाने के […]