नरेन्द्र वाल्मीकि (Narendra Valmiki) ओमप्रकाश वाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर साहित्य चेतना मंच, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) उनके नाम पर दलित साहित्य में उत्कृष्ट योगदान करने वाले रचनाकारों को ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। साचेम ने इसकी शुरुआत वर्ष 2020 से की है। इस सम्मान में प्रतिवर्ष दस रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है। इस […]
थर्ड डिग्री टॉर्चर यानी यातना और जुल्म के चरम का दृश्य-प्रभाव
संदर्भः फिल्मों में पीड़ित पात्रों के खिलाफ क्रूरता का दृश्यांकन अरविंद शेष (Arvind Shesh) अगर कोई इंसान या तबका लगातार अपने आसपास अपने लोगों पर जुल्म ढाए जाते हुए देखे, चरम यातना का शिकार होते देखे तो उस पर क्या असर होगा? प्राकृतिक या कुदरती तौर पर इंसान निडर ही पैदा होता है, लेकिन कुदरत उसे खुद को बचाने के […]
प्रोफेसर विवेक कुमार के ‘जय भीम’ पर प्रश्नों के उत्तर
वृत्तान्त मानवतकर (Dr. Vruttant Manwatkar) ‘जय भीम’ फिल्म के रिलीज होते ही उसके ऊपर वर्चुअल चर्चाओं का एक सैलाब सा आ गया है. कोतुहल और रोमांच से भरे लोग इस पिक्चर पर अपने विचार साझा करने के लिए उत्साहित हैं. ऐसा हो भी क्यों न! इस पिक्चर का नाम ही जो ‘जय भीम’ है. ‘जय भीम’ शब्द नए भारत की […]
मुख्यधारा के पत्रकारों से प्रश्न – फिल्म का नाम जय भीम ही क्यों रखा गया?
प्रोफेसर विवेक कुमार (Professor Vivek Kumar) जब से ‘जय भीम’ फिल्म रिलीज हुई है उस पर लोग काफी ज्ञान बांट रहे हैं. लोग यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि इस फिल्म में यह देखिए, इसमें वह देखिए; इसका, मतलब यह होता है उसका मतलब वह होता है. यहां तक कि लोग ‘जय भीम’ का अर्थ क्या होता है […]
रेडियो रवांडा बनता भारतीय मीडिया
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) “जब मैं अनाथालय में पहुंची तो उससे पहले ही हुतू समुदाय के दंगाई वहाँ पहुंच चुके थे। वह दोनों बहनें बच्चियां थीं। उसकी छोटी बहन को वह लोग पहले ही मार चुके थे। बड़ी बहन दौड़ कर मेरे पास आई और मुझ से लिपट गयी। उसे लगा कि मैं उसे बचा लूंगी। वह ज़ोर-ज़ोर से कहने […]
सत्ताधारियों का विमर्श ढोते हाशिये के लोग
डॉ रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) दुनिया के मज़दूर एक हो! कार्ल मार्क्स का यह कितना अच्छा संदेश है. यदि वास्तव में ऐसा हो पाता तब किसी एक देश-विशेष तो क्या दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी व्यक्ति मानव अधिकार से वंचित नहीं रह पाता. लेकिन मज़दूरया वंचित भला एक कैसे हो सकते हैं! इनके बीच जाति, उपजाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, […]
पूना पैक्ट और एक दलित-मुख्यमंत्री
डॉ. जस सिमरन कहल (Dr. Jas Simran Kehal) साहित्य के माध्यम से पूना-पैक्ट पर फिर से विचार करते हुए, मैं सोच रहा था कि इस संधि पर हस्ताक्षर करने से पहले डॉ अम्बेडकर का दिमाग कैसे काम कर रहा होगा। दलित वर्गों के हितों की रक्षा करते हुए उस तरह की कठिन सौदेबाजी को अकेले ही प्रबंधित करने के लिए […]
डेल कार्नेगी, स्वेट मारडेन और भारतीय बाबाजी
संजय श्रमण जोठे (Sanjay Shraman Jothe) डेल कार्नेगी और स्वेट मारडेन दोनों लास एंजिल्स के एक बार मे बैठकर बीयर पी रहे थे। दोनों सेल्फ हेल्प और मोटिवेशनल साइकोलॉजी के विश्व-प्रसिद्ध गुरु और लेखक हैं। लेकिन ढलती उम्र मे वे स्वयं डिप्रेशन मे जा रहे थे और एकदूसरे से मदद मांग रहे थे। कार्नेगी ने मारडेन से पूछा कि भाई […]
तू अभी जीता नहीं, मैं अभी हारा नहीं
अरविंद शेष (Arvind Shesh) हिंदी जगत के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शेष के इस संक्षिप्त आलेख में कई इशारे छुपे हुए हैं. अभावों में जीवन गुज़ारते और आत्मसम्मान की निरंतर लड़ाई लड़ते बहुजन समाज के कदम दर कदम आगे बढ़कर हासिल के बरक्स ब्राह्मणवाद के षड्यंत्र जिसने जाने किन किन बहानों से आगे बढ़ने के मुहानों को बंद कर दिया है. […]
ब्राह्मण का एकेडेमिया (कविता)
(ओम प्रकाश वाल्मीकि जी की कविता ‘चूल्हा मिटटी का’ के बहाव व् अंदाज़ से प्रेरित एक कविता)विकास कुमार (Vikash Kumar)शिक्षक यूनिवर्सिटी कायूनिवर्सिटी सरकार कीसरकार ब्राह्मण कीपढ़ाई किताब कीकिताब लेखक कीलेखक प्रकाशक काप्रकाशक ब्राह्मण काशोधार्थी ब्राह्मण कामंच ब्राह्मण काइतिहास के पन्नों में जीवनी अपनीव्याख्या ब्राह्मण कीस्कूल ब्राह्मण कायूनिवर्सिटी ब्राह्मण कीप्रोफेसर ब्राह्मण कासीट-पोस्ट-कोर्ट ब्राह्मण काफ़िर अपना क्या?विद्यालय?महाविद्यालय?विश्वविद्यालय?~~~विकास कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक […]