क्या ब्राह्मण हिट-एंड-रन करते हैं?!

कुफिर (Kuffir) क्या ब्राह्मण अपनी गाड़ी से किसी को उड़ा कर वहाँ से भाग जाते हैं? मतलब: क्या ब्राह्मण मोटर दुर्घटना का कारण बनते हैं और भाग जाते हैं? हालिया की दो घटनाएं कहती हैं कि वे ऐसा करते हैं। पहली घटना एक फिल्म की है, जो कि एक कल्पना की दुनिया वाला काम है; दूसरी है एक वास्तविक घटना […]

जाति आधारित हिंसा और स्वतंत्रता का अमृत

डॉ शीतल दिनकर आशा कांबले (Dr. Sheetal Dinkar Asha Kamble) मैं आज बहुत परेशान हूँ। देश में अमृत महोत्सव चल रहा है। देश को आज़ाद हुए 75 साल हो चुके हैं। लेकिन क्या जाति व्यवस्था खत्म हो गई है? यह कार्य अभी अधूरा पड़ा है। राजस्थान के जालोर जिले में स्वतंत्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर एक बर्तन से […]

मेरे प्यारे बच्चे, हमें कभी माफ मत करना!

ritu singh

ऋतु ‘यायावर’ (Ritu ‘Yayawar) तुम्हारी गलती सिर्फ इतनी थी कि तुमने अपनी प्यास बुझाने के लिएउनके मटके को छू लिया था खुद को ‘ऊंचा’ कहने-समझने वाले धूर्त और पाखण्डियों केमटके को छू लिया थातुम इतने मासूम थे कि नहीं समझ पाए कि यहां पानी की भी जात होती है! पर तुम्हारे असली गुनहगार तो हम हैंकि हम सब ने अपनी- […]

‘आधा गाँव’ उपन्यास की पूरी पसमांदा समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) “धर्म संकट में है। गंगाजली उठाकर प्रतिज्ञा करो कि भारत की पवित्र भूमि को मुसलमानों के खून से धोना है…” स्वामीजी जोश में आ चुके थे। “देखो, कलकत्ता और लाहौर और नवाखाली में इन मलेच्छ तर्कों ने हमारी माताओं का कैसा अपमान किया है… ।” “बोलो बजरंगबली की…” एक अकेली आवाज उठी। “जय!” सारा गाँव गूँज […]

लिंगायत समुदाय की मांगें बनाम हिन्दू धर्म

विनय डी दामोदर (Vinay D Damodar) परिचय पूरे भारत में, जातीय कारक दलगत राजनीतिक कार्यों को अच्छा ख़ासा प्रभावित करते हैं। यहाँ तक कि वामपंथी दल (केरल गवाह है) भी मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक माहौल से नहीं बच पाए हैं। कर्नाटक में, कई अन्य राज्यों की तरह, राजनीतिक सत्ता के लिए संघर्ष इसी तर्ज पर विकसित हुआ है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव अगले […]

उत्तर प्रदेश में ‘मौन क्रांति’ का क्या हुआ?

निर्बन रे और ओम प्रकाश महतो (Nirban Ray & Om Prakash Mahato) मुख्य रूप से दो दृष्टिकोण ही चलन में रहे हैं जिनके द्वारा सामान्य रूप से उत्तर भारत और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की राजनीति का विश्लेषण किया जाता है। ये दो दृष्टिकोण या विश्लेषण, हालांकि विभिन्न पद्धतियों या विविध केस-स्टडीज़ (मामले के अध्यनों) पर आधारित हैं, इनका […]

मैं जब भी देखती हूँ…

करुणा (Karuna) (1) मैं जब भी देखती हूँ मेरेमैं जब भी देखती हूँ मेरे समाज की किसी महिला कोसिर पर उपले उठाकर ले जाते हुए मुझे रमाई याद आती है मैं जब भी देखती हूँ किसी महिला को खेतों में धान रोपते या काटते हुए मैं जब भी देखती हूँ मेरी माँ को किफ़ायत में घर को चलाते हुए संकोच […]

Ghoul वेबसीरीज | राज्य का आतंकवाद व् पसमांदा दृष्टिकोण | समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) अरबी दास्तानो में एक राक्षस या फिर जिन्न् के बारे में ज़िक्र है जो इंसानो की रूह के बदले उनका कोई काम कर देता है. इस राक्षस का नाम गूअल “Ghoul” हैं. इसी राक्षस (Ghoul) के नाम पर नेटफ्लिक्स (Netfilix) ने एक डरावनी मिनीसीरीज़ (horror miniseries) बनाई है जो मात्र 3 एपिसोड की है. इसे पैट्रिक […]

झुंडः सरोकार का कलात्मक सौंदर्यबोध और समाज मनोविज्ञान की संवेदना

परतों के पार से फूटते सवाल के साथ झुंड ने नजरिये की नई कसौटी सामने रखी है, जिसके पैमाने पर परंपरावादी विचार-सत्ता को शायद अपने आग्रहों के भीतर झांकने का मौका मिले। अरविंद शेष (Arvind Shesh) शेर अगर भेड़िए से डरता है तो इसकी वजह है! भेड़िए की असली ताकत उसके दांत नहीं होती है, भेड़िए की असली ताकत उसका […]

शैक्षणिक संस्थानों में प्रशासनिक अकर्मण्यता: प्रावधान और अनुपालन

राघवेंद्र यादव (Raghavendra Yadav) जैसा कि यह सर्वविदित है कि अतीत में हुए सामाजिक अन्याय व भेदभाव से उपजे गैर बराबरी को मिटाने के लिए संविधान प्रदत्त अधिकार सही तरह से जमीनी स्तर पर इम्प्लीमेंट (अमल) नहीं हो पायें हैं। आज आज़ाद भारत आठवें दशक के पूर्वार्द्ध में है लेकिन हैरत की बात है कि आज तक सरकारें और स्वायत्त […]