Rupali Jadhav
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रूपाली जाधव (Rupali Jadhav)

Rupali Jadhavबड़े दिनों बाद आज घरवालों से बात हुई जिसमें सबसे करोना के ऊपर ही बात चली.

मैंने घरवालों से हालचाल पूछा और पूछा कि बस्ती (पुना की एक बड़ी बस्ती जिसका नाम काशेवाडी है) में क्या चल रहा है? तब मां ने कहा कि हर कोई उदास बैठा है, हर किसी के मन में सवाल है कि आगे क्या होगा? कैसे होगा?

कुछ लोग रो रहे हैं क्योंकि इन सब का पेट मजदूरी करके ही भरता है जब तक यह लोग अपनी रोज़ की मज़दूरी नहीं करते हैं तब तक इनके घर में चूल्हे नहीं जलते.

बस्ती की सभी महिलाएं अमीरों के घर में बर्तन मांजने और सफाई का काम करती है.

सभी मर्द चतुर्थ श्रेणी कामगार, साफ-सफाई का काम करते हैं.

बाकि बचे लोग मजदूरी या जो भी काम मिले वह करते हैं. इनमें से कोई भी घटक देश के ऊंचे पदों पर काम नहीं कर रहा है, अब सवाल यह है कि क्या इन बस्ती में रहने वालों के लिए सरकार के पास कोई उपाय योजना है?

मुझे समझ नहीं आ रहा कि इतनी छोटी बस्ती में रहकर, 10 बाय 10 के रूम में रहकर सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल कर और बिना काम के घर का चूल्हा ना जलकर यह सब लोग करोना से कब तक बच पाएंगे?

सरकार बोल रही है घर में बैठो, अपनी इम्यूनिटी पॉवर बढ़वो अगर काम ही नहीं मिलेगा तो जो बची-खुची पॉवर है, वह भी खत्म हो जाएंगी अगर चूल्हा न जला तो!

तो क्या इन सब को ऐसे ही मरने दिया जाए या इसके ऊपर कुछ उपाय योजना भी करनी चाहिए?

अगर सरकार की और हम देखते हैं तो अभी तक इन सभी घटकों के लिए कोई आशा मुझे तो नहीं नजर आती.

और मां की एक बात सुनकर मुझे बहुत सीरियस लगा.

 Slum Corona Fear 1

हम सबको पता है कि बस्ती में रहने वाले लोगों के दिमाग में कितना अंधविश्वास भरा होता है. ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि वह अनपढ़ हैं, गंवार हैं. तो करोना के चलते बस्ती के लोगों ने एक बात तय की है, कि सभी महिलाएं रोज सुबह जल्दी उठकर बस्ती के मंदिर में जाएंगी और भगवान के ऊपर पानी चढ़ाएंगी, और यह प्रार्थना करेंगी कि भगवान करोना को रोक दो ताकि वह हमारी बस्ती में ना आए.

तो इनके अनपढ़ होने के लिए या अंधविश्वासी होने के लिए अब इनपर गुस्सा होना चाहिए, कि दुखी होना चाहिए? मुझे समझ नहीं आ रहा है.

बात यह नहीं है कि मैं पैनिक होकर कुछ बात कर रही हूँ. बात यह है मान लीजिये अगर करोना से कोई जान नहीं भी जाती, बावजूद इसके अगर कोरोना फिर भी तेजी से फैलता जाता है तो बिना खाने के, बिना किसी परहेज़ के और लोगों में व्याप्त अंधविश्वास के चलते, सबसे पहली बली बस्ती, रोड पर रहने वाले, बेघर लोगों, मजदूरों, दलितों व् ट्रांसजेंडर, इन सभी की ही चढ़ने वाली है. वैसे भी इन बड़े-बड़े अस्पतालों मे नए मेडिकल स्टूडेंटस् द्वारा हमारे उपर एक्सपीरिमेंटस् ही होते है. 

तो क्या सरकार के पास इनके लिए कोई उपाय योजना है? या यह लोग अपनी जाति और वर्ग अनुसार करोना की बलि चढ़ेंगे?

इसका उत्तर मेरे पास तो नहीं है, और जो पास है वो है परेशानी, चिंता. क्योंकि हम किसी भी चमत्कार को या भगवान को मानने वाले लोग नहीं है, तो आगे की होने वाली आपत्ति को पहले से ही समझ सकते हैं. 

~~~

 

रूपाली जाधव एक रंगकर्मी हैं और कबीर कला मंच, पुणे से जुड़ी हैं.

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