फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) अशराफ अक्सर पसमांदा आंदोलन पर मुस्लिम समाज को बांटने का आरोप लगाकर पसमांदा आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। जिसके चपेट में अक्सर पसमांदा आ भी जाते हैं। जबकि पसमांदा आंदोलन एक वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की चेष्टा, सामाजिक न्याय का संघर्ष, हक़ अधिकार की प्राप्ती का प्रयत्न है। […]
एक अनपढ़ दलित लेखक का बौद्धिक सफ़र
प्रज्ञा चौहान (Pragya Chouhan) समाज का एक व्यक्ति जिसे तीसरी कक्षा की पढाई बीच ही में छोड़नी पड़ गई हो, और वह अपने जीवन में 20 किताबों को बहुजन आन्दोलन की झोली में डालकर एक साहित्यकार की उल्लेखनीय भूमिका अदा करे और 9 सम्मान चिन्हों से उसे नवाज़ा जाये, ये बात बेशक ध्यान खींचती है. यह व्यक्ति थे मध्यप्रदेश […]
विज्ञान के उपभोग में अग्रणी लेकिन दिमाग पत्थर युगी
संजय जोठे (Sanjay Jothe) कल ट्रेन में सफर के दौरान चार युवा इंजीनियर्स से बात करने का मौका मिला। चारों एक दूसरे से परिचित होते हुए अपनी पढ़ाई, कमाई, अनुभव, कम्पनी आदि का बखान कर रहे थे। जाहिर हुआ कि चारों देश की सबसे अच्छी सॉफ्टवेयर कम्पनियों में कार्यरत हैं, दो पुणे में एकसाथ है दूसरे दो मुम्बई एकसाथ […]
… बताओ फूलन देवी, क्यों न उन्हें बनना पड़े?
बाल गंगाधर बागी (Bal Gangadhar Bagi) बाल गंगाधर बागी बहुजन आन्दोलन के कारवां में, एक कवि के रूप में, नया हस्ताक्षर हैं. अपने समाज की दशा और दंश के लम्बे इतिहास को अपनी कविताओं के माध्यम से बयाँ करते हैं. यह जानना हमेशा दिलचस्प रहता है कि कला के झरोंखे से अपनी जड़ों ,आसपास बने और बदलते हालातों और […]
मुस्लिम तुष्टिकरण का सच
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी भारत देश की जलवायु भूमि और भौतिक सम्पदा से आकर्षित हो कर बहुत सारे आक्रमणकारी, व्यापारी और पर्यटक यहाँ आए। कुछ ने सिर्फ व्यापार तक ही खुद को सीमित रखा, कुछ लूट पाट करके वापस हो गए, कुछ ने व्यापार के साथ अपना राजनैतिक स्वार्थ भी सिद्ध किया, कुछ ने सिर्फ थोड़े समय के लिए निवास […]
बनावटी अपराधबोध का निर्माण और इसे ख़ारिज करने की आवश्यकता
सुरेश आर वी (Suresh RV) ‘यह आलेख उन दलित-बहुजन युवाओं के लिए लिखा गया है जिनके मन में इस बात को लेकर confusion रहता है कि आरक्षण लेना चाहिए अथवा नही. या कि वे आरक्षण के वास्तविक पात्र हैं भी कि नही? क्योंकि एक समय अपने जीवन में मैं भी इसी शंका, अपराधबोध और असुरक्षा से ग्रसित था. इसलिए इस […]
…ये सबसे सुरक्षित और सबसे कारगर काम है
संजय जोठे (Sanjay Jothe) भारत के दलितों आदिवासियों, ओबीसी (शूद्रों) और मुसलमानों को मानविकी, भाषा, समाजशास्त्र, दर्शन इतिहास, कानून आदि विषयों को गहराई से पढने/पढाने की जरूरत है. कोरा विज्ञान, मेडिसिन, मेनेजमेंट और तकनीक आदि सीखकर आप सिर्फ बेहतर गुलाम या धनपशु ही बन सकते हैं, अपना मालिक और अपनी कौम के भविष्य का निर्माता बनने के लिए आपको […]
ये ‘हाई प्रोफाइल’ शिक्षा – क्या इसके कोई सामाजिक सरोकार भी हैं?
संजय जोठे (Sanjay Jothe) भारत में इंजीनियरिंग मैनेजमेंट मेडिसिन या तकनीक की अकेली पढाई पूरी कौम और संस्कृति के लिए कितनी घातक हो सकती है ये साफ नजर आ रहा है। इस श्रेणी के भारतीय युवाओं में समाज, सँस्कृति, साहित्य, इतिहास, धर्म की अकादमिक समझ लगभग शून्य बना दी गयी है। ये तकनीक के “बाबू” देश के लिए बड़ा […]
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और पसमांदा प्रश्न
फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने स्थापना से लेके आजतक ये दावा करता आया है कि वह इस देश में बसने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक समाज की एक अकेली प्रतिनिधि संस्था है, जो उनके व्यक्तिगत एवम् सामाजिक मूल्यों को, जो इस्लामी शरीयत कानून द्वारा निर्धारित किये गए हैं, देखने भालने का कार्य सम्पादित करती है। इसके अतिरिक्त […]
मुस्लिम राजनीति के मुद्दे बनाम पसमांदा मुद्दों की राजनीति
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) मियां-बीवी औसत 3 बच्चे, दो कमरे का घर. उसमे से एक कमरे में पॉवर लूम लगा हुआ रहता है. जो तब तक चलता है जब तक लाइट रहती है. इस पॉवर लूम को घर के सभी सदस्य मिल के चलाते हैं. उत्तर प्रदेश में लाइट का हाल आप को पता ही है पूरे दिन में मुश्किल से […]