कृष्ण: भारतीय मर्द का एक आम चेहरा…!

(कृष्ण की लोक लुभावन छवि का पुनर्पाठ!) मानुषी आखिर ये मिथकीय कहानियां किस तरह की परवरिश और शिक्षा देती हैं, जहां पुरुषों को सारे अधिकार हैं, चाहे वह स्त्री को अपमानित करे या दंडित, उसे स्त्री पलट कर कुछ नहीं कहती। फिर आज हम रोना रोते हैं कि हमारे बच्चे इतने हिंसक और कुंठित क्यों हो रहे हैं। सारा दोष […]

‘बहुजन साहित्य’ की अवधारणा के औचित्य की एक पड़ताल

डॉ मुसाफ़िर बैठा ओबीसी साहित्य और बहुजन साहित्य की धारणा को हिंदी साहित्य के धरातल पर जमाने का प्रयास बिहार के कुछ लोग और उनका मंच बनी ‘फॉरवर्ड प्रेस’ पत्रिका पिछले तीन-चार वर्षों से (अब सिर्फ ऑनलाइन) करती रही है। दरअसल, यह हिंदी में दलित साहित्य की सफलता एवं स्वीकृति से प्रभावित होकर पिछड़ी जातियों द्वारा की जा रही कवायद […]

राष्ट्रवाद और देशभक्ति

संजय जोठे धर्म जो काम शास्त्र लिखकर करता है वही काम राष्ट्र अब फ़िल्में और विडिओ गेम्स बनाकर बनाकर करते हैं. इसी के साथ सुविधाभोगी पीढ़ी को मौत से बचाने के लिए टेक्नालाजी पर भयानक खर्च भी करना पड़ता है ताकि दूर बैठकर ही देशों का सफाया किया जा सके, और यही असल में उस तथाकथित “स्पेस रिसर्च” और “अक्षय […]

बाबा रामदेव और देशभक्ति का व्यापार

 ललित कुमार   एक तरफ  तो प्रधान मंत्री और देश की सरकारें खुदरा भारतीय बाजार में १०० प्रतिशत तक पूंजी निवेश का समर्थन करते है, विदेशी निवेशकों को  लुभाने के लिए भारतीय प्रधान मंत्री देश का पैसा खर्च करके विदेश जाते हैं और दूसरी तरफ स्वामी राम देव की कंपनी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का आग्रह करती है, ये कहकर […]

अपना मीडिया : वक्त की जरूरत

दिनेश अमिनमन्तु  [यह भाषण “मीडिया में दलित प्रोफेशनल की सहभागिता”, दिनेश अमिनमन्तु द्वारा कन्नड़ में दिया गया था। जो कर्नाटक SC/ST एडिटर एसोसिएशन द्वारा बाबासाहेब की १२५ जयंती के अवसर पे हुए 18th जुलाई 2016 के कार्यक्रम का हैं. ]   अगर मुझसे कोई भारतीय मीडिया में मेरे रोल मॉडल के बारे में पूछे तो मेरा जवाब डॉ बाबा साहेब […]

अस्मिता की राजनीति या न्याय की लड़ाई

जयप्रकाश फाकिर अम्बेडकर , पेरियार, ललई यादव, कयूम अंसारी जैसे दलित बहुजन नेता इसी सवर्णवादी समझ से जूझते हुए दलित बहुजन प्रश्न को सियासी दायरे में लाने में सफल रहे और १९९० के बाद का साइलेंट इन्कलाब मुमकिन हो सका. अब सवर्ण राजनीति के बाएं और दायें दोनों बाजू के धड़े इस क्रांति को उल्ट देना चाहते हैं. इसके लिए […]

दलित-विद्रोह की लपटों में घिरा आरएसएस – संघियों के गले का फांस बनी गाय

अरविंद शेष दो बयान देखें:- 1-    तब के रावण, आज के नसीमुद्दीन/ तब के लक्ष्मण आज के दयाशंकर सिंह.      तब की शूर्पनखा, आज की मायावती/ तब की दुर्गा, आज की स्वाति सिंह.       – इलाहाबाद में आरक्षण मुक्त महासंग्राम और भाजपा के छात्र नेता अनुराग शुक्ला की तरफ से लगाया गया पोस्टर. 2-    हिंदुओं के पाप के कारण ही […]

राजस्थान में दलित छात्राओं के उत्पीड़न का एक और मामला

सुरेश जोगेश 4 नन्ही सी पीड़ित बेटियां, 1 बेबस लेकिन प्रयासरत शिक्षिका, सहमे अभिभाभावक, अफसरों की आज्ञा तले दबी स्थानीय पुलिस और 5 महीने से आतंक मचाये रसूखदार अपराधी राजस्थान में पुनः एक 13 वर्षीय मासूम दलित के साथ वही किये जाने की कोशिश हो रही है जो डेल्टा मेघवाल के साथ हुआ. पाली (राजस्थान) की यह घटना 14 व […]

सामाजिक आंदोलन व स्त्री शिक्षा: डॉ अम्बेडकर और उनकी दृष्टि

रितेश सिंह तोमर मैं समुदाय अथवा समाज की उन्नति का मूल्यांकन स्त्रियों की उन्नति के आधार पर करता हूँ | स्त्री को पुरुष का दास नहीं बल्कि उसका साझा सहयोगी होना चाहिए | उसे घरेलू कार्यों की ही तरह सामाजिक कार्यों में भी पुरुष के साथ संल्गन रहना चाइये”| आधुनिक भारत के संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष व सम्पूर्ण […]

कबाली – दलित पृष्ठभूमि पर बनी एक बेहतरीन फिल्म

राजेश राजमणि  पी ए  रंजीत की फिल्म होने के नाते, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस फिल्म के बहुत सारे सामाजिक संवाद अम्बेडकरवादी विचारधारा से लिए गए हैं. फ़िल्म का नाम और इसके नायक का नाम ‘कबाली’ रखना – तमिल सिनेमा में नाम अक्सर ऐसा अनोखा पहलू होता है जिससे विरोधियों पर पदाघात किया जा सके, कबाली के सूट […]