लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) मेरे शहर के बारे में एक दंत कथा मशहूर है कि यहाँ पहले नट नाम के राक्षस का राज्य था। लोग उसके आतंक से बहुत परेशान थे। तत्कालीन हुक्मरा सैय्यद शालार मसूद गाजी ने बाबा मलिक ताहिर को यहाँ इस इलाके पर कब्जा करने के लिये भेजा था। बाबा ने नट को मार कर एक बोतल […]
गाय, ‘पिछड़ापन’ और ‘बहुजन’ महिलाएं
आशा सिंह (Asha Singh) बिहार के भोजपुर जिले में पड़ने वाले मेरे अहीर जाति–बहुल गाँव में सातवीं तक स्कूल है. इसके बाद जो पढ़ना-लिखना चाहते हैं उनका नाम दूसरे गाँवों या आरा टाउन के स्कूल में लिखवा दिया जाता है. लड़के तो स्कूल जाते हैं लेकिन लड़कियां साल में केवल दो बार, एक बार नाम लिखवाने के लिए और दूसरी बार परीक्षा देने […]
हम लोगों के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और पाने के लिए पूरी दुनिया है।
दीपाली तायडे वैसे तो लड़कियों के इनबॉक्स में रोज़ तमाम तरह के मैसेज आतें हैं, पर बीते दिनों कुछ लड़कियों के जो मैसेज आए उन्होनें मुझे लिखने पर मजबूर कर दिया। पहाड़ों पर घुमक्कड़ी की कई फ़ोटो के अपलोड के दौरान बहुत से कॉमेंट और मैसेज मिले, लेकिन मेरी लड़की दोस्तों ने जो लिखा वो लगभग कई बहुजन लड़कियों […]
जाति विनाश कैसे हो?
संजय जोठे जाति विनाश अगर सवर्णों से अपेक्षित है तो ये व्यर्थ का प्रोजेक्ट है. लेकिन जाति विनाश दलितों पिछड़ों से अपेक्षित है तो इस प्रोजेक्ट से बहुत उम्मीद की जा सकती है. जाति विनाश कैसे होगा इसकी विस्तार से चर्चा करने से पहले दो वक्तव्य याद रखिये. महान आयरिश लेखक, विचारक और नाटककार जार्ज बर्नार्ड शॉ से एक बार […]
जाति विनाश- एक थकाऊ और अनावश्यक प्रोजेक्ट
संजय जोठे आर्य आक्रमण थ्योरी सही हो या न हो, इतना तो पक्का हो चला है कि मूल रूप से इस देश में श्रमणों की संस्कृति थी जो पहले गंगा यमुना के संगम के इलाके से पूर्व की तरफ फ़ैली हुई थी. बाद में बौद्ध संस्कृति के रूप में इसका विस्तार कंधार बामियान तक हुआ. ये श्रमण असल में जैन, […]
सिखों के स्वशासन के अधिकार पर डॉ. अंबेडकर का बहुमूल्य मशवरा
यह आर्टिकल सरदार अजमेर सिंह की किताब ‘बीसवीं सदी की सिख राजनीती – एक गुलामी से दूसरी गुलामी तक’ से लिया गया है। (पंजाब के विभाजन के बाद बनी परिस्थितियों और अलग सिख राज्य पर) पंजाब के विभाजन के बाद पूरबी पंजाब में अलग अलग वर्गों की जनसँख्या के अनुपात में खासी तब्दीली आ गई थी। पश्चिमी पंजाब […]
पेरियार से हम क्या सीखें?
संजय जोठे इस देश में भेदभाव और शोषण से भरी परम्पराओं का विरोध करने वाले अनेक विचारक और क्रांतिकारी हुए हैं जिनके बारे में हमें बार-बार पढ़ना और समझना चाहिए. दुर्भाग्य से इस देश के शोषक वर्गों के षड्यंत्र के कारण इन क्रांतिकारियों का जीवन परिचय और समग्र कर्तृत्व छुपाकर रखा जाता है. हमारी अनेकों पीढियां इसी षड्यंत्र में […]
मैं एक पीडिता की मौत नहीं मरूंगी, मैं एक अग्रणी (लीडर) की तरह जीना चाहती हूँ।
मनीषा मशाल दलित महिलाओं की आवाज को किसी भी कीमत पर उठाने के लिए कटिबद्ध हूँ. क्योंकि यदि हम इन स्वरों को बाहर नहीं आने देंगे, तो हम इस दुःख को समाप्त करने के उपाय नहीं खोज सकते. क्या यह बहुत कठिन होगा? हाँ. मुझें अनेकों चुनौतियों, जोखिमों और धमकियों का सामना भी करना होगा. परन्तु मुझे किसी का भी […]
दलितों के खिलाफ़ गाय एक राजनीतिक हथियार के रूप में
गुरिंदर आज़ाद समसामयिक मुद्दों पर साक्षात्कार और डॉक्यूमेंट्रीज की आंबेडकर युग श्रृंखला में, गुरिंदर आज़ाद राउंड टेबल इंडिया के लिए अरविंद शेष और रजनीश कुमार का इंटरव्यू लेते हैं. दोनों पेशे से पत्रकार और सामाजिक चिन्तक हैं. वे पूरे मुद्दे को विभिन्न आयामों से विश्लेषित करते हैं. गुरिंदर आज़ाद द्वारा लिया गया यह इंटरव्यू 13 अगस्त 2016 को Youtube पर और […]
‘कबाली’ : दलित दखल के दम से बदलता परदा
अरविंद शेष फिल्म में ‘कबाली’ का डायलॉग है- “हमारे पूर्वज सदियों से गुलामी करते आए हैं, लेकिन मैं हुकूमत करने के लिए पैदा हुआ हूं। आंखों में आंखें डाल कर बात करना, सूट-बूट पहनना, टांग के ऊपर टांग रख कर बैठना तुमको खटकता है, तो मैं ये सब जरूर करूंगा। मेरा आगे बढ़ना ही मसला है, तो मैं […]